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चौतीस स्थान दर्शन
(.-४७२ ) कोप्टक नं. ६५
संयमासंयम में
१ध्यान को नं०१७-१८ देखो ' को २०१७-१८ देखो
(2)नि -मनप्य मति में हरेक में
.१ का भंग को० नं. १७-१८ देखो
मारे भंग
मंग को नं. १३-१८ देवो को न०१७-१८ देखो
(१) निर्यच मन्य गनि में हरेक में
३७ का भंग को.नं०१७-१८ के समान जानना
आर्त व्यान ४, रौद्र व्यान ४. प्राज्ञा चि०, प्राय वि०, दिशाक विचा३,
ये (११॥ २२ यात्रव
हिमा घटाकर अदिस्त ११, (हिमक स्पर्गादि इन्द्रिय विषय ५. हिस्य ६ मे ११) योग १, कषाय १७
से (२७) जानना २३ भाव
३१ । उपसम-क्षाधिक म०२, कान ६, दर्शन , नविषय | बेदक मुम्यक्त्व, मंयमामंयम १, तिर्यच गति १. मनुष्य गति, कषाय ४, लिंग ३, शुभ लेश्या ३, अजान १, प्रसिद्धत्व १, जीवत्त , भञ्चल ये ( 0
मारे भंग कोल्ने०१७ देखो
को० नं० १७ देखो
(१) यिं च गति में
२६ का भंग मामाभ्य के ३१ में मे क्षायिक म... मनुष्य गति १ ये २ घटाकर २६ का भंग
जानना (8) मनुप्य गति में
३० का भंग नामाग्य ३१ के भंग में मतिर्वच गति घटाकर ३० का भंग जानना
सारे भंग
मंग को नं०१८ दसोका नं. १: देखो