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चौतास स्थान दर्शन
कोष्टक नं०७५
कृष्ण या नील लेश्या में
।
२१ च्यान । सारे भंग १ ध्यान ।
। मा भंग १ ध्यान ' कोम० १६ देखो कर्म भूमि की अपेक्षाको न०१६-१७. कोनं०१६-१३-अपाय विरय घटाकर (8)
(१)तीनों गतियों में हरेक में | १८ देखो १८ देखो (१) नत्र गति में कोन.१६ देखो कान०१८ देखा F-8-१० के भंग
८-६7 भग को नं०१६-१७-१८
को नं०१६ देखो देखो
(२) निर्यच गति मे और, भंग १ ध्यान देवगत में
: का. नं. - कोनं०१६का भंग
१९ सो १६ देखो को नं-१७-१६ देखी (1) मनग्य गति में मारे भंग १ ध्यान
- के मंग inोनं०१८दखा को००१८ देखो २२ पात्र
कोनं १८ देखा । प्रा. मिथकाययोग ।
मारे भंग १ भंग
५
. सारे भंग १ भग प्रा. कापयोग १,
मो० मिथकापयोग १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान मनोयोग ४, वचनयोग ४ अपने अपने स्थान के सारे भंगों में में ये २ घटाकर (५५) वै. मिश्रकाययोग १, सारे भंग जानता के सारे भंगों में प्रौ० मिश्रकायमोग १, । मारे मंग जानना | कोई १ भंग कार्मारा काययोग १ 1 कोई भंग व. मिथकाययोग १,
जानना से ३ घटाकर (१२)
ये १० घटाकर (४५) (१) नरक गति में | सारे भंग । १ भंग (१) नरक - ति में
मारे मंग
भं ग YE-४४-४० के भंगको .नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो ४२-३३ के भंगको नं. १६ देखो कोनं १६ देखो को० न०१६ देखो
को.नं. १६ देखो (२) नियंच गति में सारे मंग १ मंग () तिर्यच गति में सारे भंग
भंग २६-२८-६९-४०-४३-५१- कोनं०१७ देखो कोनं०१७ देखो ३७-३८-६-१०-१३. को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देलो ४६.६२ के भंग
४-३०३३-३४-२१-६८ को नं०१७ दवा
३३ केभंग (२) मनुष्य - नि में
| सारे भंग । १ भंग को० नं०१३ दबा ५१-४६-२ के भंग का००१-खो कोन०१८ देक्षो (३) मनु म गति में सारे भंग १ भंग को० नं.१- देखो
४४-48.-३ के भंगको न० १० देखो को००१८ देखो कोनं०१८ देखो