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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं० ७७
पीत लेश्या में
अंग
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१ मंग।
___ को नं.१ देखो
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१०१ भंग १ भंग नीनों गनियाँ में हरेक में कोन०१७-१८-१६को नं. १७-१८- दोनों मतियों में हरक में को० न०१८-१९-कोनं०१५-१६ १० का भंग
देखो १६ देखा का भंग
देखो कोरनं. १७-१८-१६ देखो .
को००१-१६ देखो
देतो
१ भंग १ भंग को० न०१ देखो (E) नियंन गति में कोन. १७ दखो कोनं०१७ देखो (१) मनुष्य गति में काम देखो 'कोल्नं०१८ देखो ४.४ के भंग
४ का मन को नंक १७ देखा
| कोनं०१८ देखो | (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ भग (२) देवगति में
१ भंग १ भंग ४-३-४ के भंग को नः १८ देखो को नं०१८ देखो ४ का भंग
का नं.१६ देखो को.नं.१६ देखो को न.१८ देखी
की.नं.१६ देखा। (३) देवगति में
१ भंग १ भंग । ४ का मंग
वो नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो
को नं०१६ देखो ६गति १गति
१ गति १ गति तिर्यंच, मनुष्य, देव ! तीनों गति जानना
मनुप्य, देव ये २ गति ये ३ गनि जानना कोनं०१७-१८-१६ देखो
जानना
को० नं. १५-१६ देखो । इन्द्रिय जानि पंचन्द्रिय जति तीनों गतियों में हरेक में
दोनों गतियों में हरेक में १पनेन्दिय जाति जानना
१ पंचेन्द्रिय आति जानना को० नं०१७-१८-१६ देखो.
को० नं. १८-१ देखी काय अमकाय निर्यच-मनुष्य-देव ये
मनुष्य-देवगनि में गतियों में हरेक में
१ उसकाय जानना १ पसकाय जानना
को० नं०१५-१६ देखो की.नं. १७-१८-१६ देखो
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