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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक २०६६
यथाख्यात संयम में
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००४
१
यांग १, कार्माण काय| (2) मनुष्य गति में कोनं०१८ देखो को नं. १ - देखो (१) मनग्य गति में
देखो को नं०१८ देखो योग १, ११ यांग | १-५-३-० के भंग
|२-१ के मन जानना कानं०१ देखो
का नं.१- देखी १. वेद
(0) अपगत बंद ११ कषाय
(७) पाप १२ जान
सारे भंग १ज्ञान मनियत-अवधि (१) मनुष्य गति में
को नं० १८ देखो कोग्नं०१८ दवा (?) मनुष्य गति में की नं.१देखो कोन०१५ देखो मनः पयेय-केवल ज्ञान । ४-१ के भग
.के.जनभान जानना कोक नं०१८ देखो
का. न. १ को १३ संपम
१ १ ययाल्यात नंयम जानना १४ दर्जन
४
सार भंग । दर्जन अचक्षु-यक्ष दर्शन-प्रवि- (१) मनुष्य गति में कोन०१८ दलो को न०१८ देखो (1) मनु'य गति में कोनं०१६ दमों का नं.१- देखो कंवल दर्शन ये ४ ३.१ केभंग
कवन दर्गन जानना को न०१८ देखा
की.नं.१ दशा १५ लेश्या
१ शुक्ल लेश्या जानना १६ भव्यत्व
१ भव्य जानना १७ सम्यकन्द
मारे भंग १ सभ्यरसायिक मम्यवाद उपशम-भाविक स० ) मनप्य गति में को० नं० १८ देखो कोन०१ देखी को: नं१ दबा
१-१ के भंग
बा० नं०१८ देना । १८ गंजी नजी | (2) मनध्य गनि में
को नं० १८ दवा कोनं दग्बो का... १८ देना 1.0 के मंग
को नं०१८ देखो १६ पाहारक सारे मंग । १मस्या
न भंग भवस्था माहारक, अनाहारक (1) मनुष्य नि म
कोनं. १८ दखो कोनं। १:दगी (2) गनर व मामानंदगी को०१६ देखो १-१-१क भग
1- भंग कानं०१८ देखा
को नाची