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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं०६७
परिहार विशुद्धिसंयम में
स्थान
सामान्य मालाप
पर्यात
! अपर्याप्त
नाना जावों की प्रपंभा
एक जीव की अपेक्षा । एक जीच की अपेक्षा नाना ममय में
एक समय में
__ १ । ३
।
६-3-5
सारे मुख स्थान दोनों गुण
१गुला स्थान दो मे में कोई १ मुनग०
गूचना- यहां पर अवस्था नहीं होती
१ भंग काल तं० १८ देखा . कोनं० १८ देखो
४प्राण
कोन०१८ देखो
१ भंग को.नं. १- देखो
१ गुण स्थान र पीर ७ये २ गुरण !
६ प्रमत, ७ अप्रमत २ गुण स्थान २ जीव समास
१ सजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना ३ पर्याति को नं. १ देखी : (१) मनुष्य यति
६ का भंग
का १८ देखा नं० १ देखो (१) मनुष्य गति में
१० का भंग
को० न०१८ देखो संज्ञा को० नं. १ देखो | (१) मनुष्य गति में
४-६ के मंग
को० नं०१८ देतो ६ गति
१ मनुष्य गति जानना ७ इन्द्रिय जानि
१ पंचेन्द्रिय जानि जानना - काय
१ चमकाय जानना है योग मनोयोग ४, वचनयोग ४, (१) मनुष्य गति में। मौकाययोग ? ये (E)
Eके अंग
को० नं.१८ देखी १० बेद
१ (१) मनुष्य गति में
१ पुष वेद जानना
१भंग का० नं.१८ देखो
१ मंग कोनं-१८ देखो
सारे भंग को ०१ देखो
योग को नं०१५ देखो
सारे मंग को००१८ देखो
को नं०१८ देन्यो