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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं०६०
मति-श्रु त ज्ञान में
देखो
२१ ध्यान
१४ सारं भंग । १ ध्यान
सारे भंग सूक्ष्म किया प्रति पानि. (१) नरक-देव गति में कोल नं०१५-१६को नं। १६-१६ (१) नरक-देवगनि में कोन १५-१६ को नं०१६-१६ न्युपरत क्रिया दि. 1 हाक में
हरेक में
देखो ये २ पटाकर (१४) । ६का भंग
६ का भग को० नं १६-१६ देखा
को नं.१६-१६ देखो। (२) तिरंच मति में
(२) तियंच गति में
१ भग १ध्यान १०-११-१० के भग को० न०१७ देखो कोलखोग गुम
ना१ को फोनं १७ देखो को० नं०१७ देखो
का मंग (३) मनुष्य गति में
सारे भंग । १ ध्यान को न १७ देसी
कोनं० १८ देवो कोन०१८ देखो (मनप्य गति में सारे भंग १ म्यान के मंग
1-80 के भगवान १५ देखो कोन १८ देखो कोनं १८ देखो
कोल नं। १८ देखो २२ मानव सारे भंग
मारे भंग अनन्तानुनन्धी कषाय श्रो० मिथकाययोग १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान मनोयोग ४, वचन योग ४ पर्याहवत जानना पर्याप्तवत् जानना मिथ्यात्व ५, ये
बैल मिश्रकाययोग १, | अंगों में में कोई के नारे भंगों में काययोग १. घटाकर (४८) जानना प्रा. मिथकाययोग १. सारे भग जानना से काई १ मग वं. काययोग, कारिण काययोग १
जानना प्रा० काययोग ? ये ४ घटाकर (54)
। ये ११ पाकर ।३७) (१) नरक गति में
सारे भंग १ भग (१) नरक गति मे सार भगभग ४० का भंग
को.नं. १६ देखी को नं०१६ देखी ३ का भंग कोन. १६ देशों को नं०१६ देखो को नं. १: देखो
को ना देखी (२) तिर्यच गति में
मारे मंग १ भंग (२) तिथंच गति में | मारे भंग १ मंग ४२-३५-४१ के मंग को दग्ना कोनं०१ देखी भो। भूमि की अपेक्षा कोनं १७ देशों कोनं १७ देखो कान०१७दंगो
..का भंग (3) मनुस्य मनि मे
सारे भग १ भंगची ४२-३४-२२-२०-२२-१६ को नं०१५दनो कान दगी । मनुष्य गति में । सारे भंग । मंग
२३-१२-३: भगकोन१%देशे कोनं०१८ देखो १०-६-११ के मंग
कन.१ दखी को० नं.१८के समान जानना