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कोष्टक नं०६३
केवल ज्ञान में
चौतीस स्थान दशन १० स्थान | गामान्य मालाप पर्याप्त
अपर्याप्त : एक जीव के नाना एक जीव के एक।
। १ जीव के नाना एक जीव के समव में समय में | नाना जीबों की अपेक्षा / ममय में एक समय में
नाना जोव की अपेक्षा
१३और ११ नुसार
१ सा स्थान ..
१३-१ य २ मुगग २ जीव समास २ संजी पं०-पयांप-अपर्याप्त पर्यानि
को.नं.१ देखो
पर्याप्त अवस्था
६ का भंग का दं १८ देखो
मारे गुण स्थान | १ गुगा
१वें चरण जानना नामा
ममाग १ मंशी पंचन्द्रिय अपर्या अवस्था
१ भंग ६का भग ६ का भंग ३ का मन
३ का भंग
को० नं.१देखो १ भंग । १ भंग
१ मंग ४-१ के भनों में से 6-१ के भंगों में | घायु-काय बत ये (२). २ का भग 'कोई भग जानना में कोई १ भंग का मंग
| जानना को नं. १८ देखो
। १भंग ' ३का भंग
१ भंग
का भंग
मनुप्य गति में
४-१ के भंग कोल्नं १- देखो (0) अपगत संज्ञा १मध्य गनि १ पन्द्रिय जानि १त्रमकाय
४प्राग्ग
पायु, कायबल, श्वासोश्वाम, वचन बल ४) संजा
० । गनि ७ इन्द्रिय ज.नि
काय है योन मत्य वचन योग . अनुभय बचन योग , सत्य मनोयोग , अनभय मनोयोग, मौ० विधाययोग १ ।। पौरारिक कादयोग १. कार्माण काययोग १, । मे योग जानना
श्री. मिथकाययोग ? फार्माग काययांग १ ये २ घटाकर () मनुष्य गनि मे ५-३-० के मंग कॉ०१५ देखा
सारे भंग । १ योग
पौ. मिश्र कापयोग १ ।
काणि कायरोग मे २ योच जानना
मनुष्य गति में 1-1-० के भंग ५-६- के मंगों २-१ के भंग जानना में से कोई १ योग को० नं०१८ देखो
जानना
मारे भंग -१ के मंग जानना । ।
१योग २-१ के मंगमें से कोई १ योग जानना