________________
चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नम्बर ६२
मनः पर्यय ज्ञान में
।
मनुरा गरि में । 9.... के भग-को. नं.
सारे भग 5-1-2-१ केभंग जानना
। ।४.. अंत में । । नेमाई १ व्यान
१ भंग | कोर नं.१- देवो
।
।
२१ ध्यान
अनिष्ट संयोग, वेदनाबनिन निदानव मानध्यान ३, धर्मव्यान ४, । पृथक्त्ववित विचार | एकत्ववितके विचार
ये ध्यान जानना २२ पासव
ऊपर के योग
कषाय १६ २३ भाव
उपशम सम्यक्त्व | पगम चारित्र. आयिका सम्बक्त, दायिकचारित्र, मनः पर्यय । जान १, दर्गन , । नन्धि , मरागसंयम १,। क्षयोपशम गम्यकच । मप्य गति ?, गंज्वलन । कपाय ४. पुष्पग, शुभ लेश्या प्रजान ? | अमिहत्त्व ? नीवत्र १, भव्यद में जानना
ना
देखी ।
मनुष्य गति में
सारे भंग २०-२-२ -१६.१५.४-:-:.११.१०- | कोन.१देखो १. के भंग-को- देखो
| सार भग मनुण्य गति में
| को: नं०१८ देखो २८-२८-२६-२९-२६-०४-२३-२२-... २०.२०-:-23 के भंग-को० नं. १८ । के 2.21-२९- ८-२५-२६-२५२४.२३.२३-२९- हरेन भंग में में मति-थत-मधि प्रान चे ३ ज्ञान घटाकर २८-२८-२९-०६-२५-०४.५३२०-२१-02-०-१-१७ के भग जानना