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चौंतीस स्थान दर्शन
( ४५७ कोष्टक नं०६३
केवल ज्ञान में
सारे
(०) अपगार ११ कवाय ३२ ज्ञान
केवल ज्ञान जानना १. संयम
१ यथाख्यान जानना १४ दर्शन
१ केबल दर्शन जानना १५ लेश्या १-० के भंग
१लेश्या शुक्ल मेश्या जानना । को.नं.१- देखो
१-१ भंग १ लेश्या को० नं. १८ देखा १ भव्य जानना १७ सम्यास्त
क्षायिक सम्यक्त्व जानना १८मजी
(०) भनुभय पर्थात,
म संझी न असंत्री जानना । १६ माहारक
सारे नंग अवस्था
सारे भंग १ अवस्था माहारक. अनाहारक मनुष्य गति में
१-१ भंग १-१ में से कोई मनृण्य गति में 1१-१के भग जानना १-१ में से कोई जानना १ अबस्था 1.1 के भंग
१ मवस्था कोर नं०१८ देखो
| को.नं.१८ देखो २० उपयोग सारे अंग उपयोग
मारे भग १ उपयोग जानोपयोग १. दर्शनोप- का भंग दोनों युगपत जानना दोनों उपयोग का मंग
दोनों उपयोग 'दोनों युगपत् योग, ये उपयोग को.नं.१% देखो
युगपत जानना को नं०१५ देखो युगपत जानना जानना सारे भंग ध्यान
१
सारे भंग १ ध्यान सुक्ष्म क्रिया प्रति पाति' -के भर 1-1 मंग दोनों में से कोई १ का मंग
१ ध्यान व्युपरत त्रिया निवासिनी को नं. १८ देखो
जानना १ ध्यान जानना को०नं० १% देखो ये २ घान जानना सूचना पेज ५८ पर देखो सारे अंग १ मंग ।
सारे भंग १ भंग परोष मानना ५-३-० के भंग को.नं. १८ देसो कोन.१८ देखी २-१ के भग को.नं.१ देखो को१८ देखो को.नं. १८ देखो
को. नं०१८ देखो २१ भाव १४
सारे श्रम
बंग आयिक भाव है. मनुष्य मनुष्य गति में
को.नं. १८ देखो कोनंग देखो मनुष्य गति में को. नं० १८ देखो को नं. १६ देखो गनि.शुक्ल लेश्या । १८१७ के भय
१४ का भंग मसिद्धत्व १. जोवस्त्र १, को नं. १८ देखो
को. नं.१८खो भव्यस्व ११४ भाव जानना