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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं०६०
मति-श्रु त ज्ञान में
२० उपयोग
ज्ञानोपयोग १ दर्शनोपयोग ३
१ माहारक जानना ।
को नं०१६-१६ देखो की.नं. १ और १३
(२) निर्यच गति में ।
१ पबस्था देखो
भोगभूमि की अपेक्षा को नं०१७ देखो | को.नं.१३ तियंव मौर भनुम्य गतियों में हरेक में
को० नं०१७-१८ को नं. १७- (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १ अवस्था ११ के भंग-का० नं. देखो
१८ देखो । १-१-१-१-१ के भंग | कोन०१८ देखो को नं १५ १५-१८ देतो
'को० नं०१८ देखो ४! (1) नरक गनि में
१ उपयोग (1) नरकगति में
१ भंग १ उपयोग । ४ का भंग-
कोनं १६ ४ का भंग जानता ४ के भंगों में ' ४ का मंग-गोर नं.१६ पर्याप्तवत् जानना | पर्याप्तवत् के के भग में से मति-श्रुत से कोई१ के ६ के भंगों में से |
जानना जानों में मे जिसका विचार
उपयोग जानना पर्याप्तवत् शेष २ जान करो यो १ छोड़कर शेष
घटाकर ४ का भंग जान घटाकर ४ के भय |
। जानना जानना
(२)नियंच गनि में । १ भंग १ उपयोग (२) नियंच गति में
१मंग १ उपयोग । भोगभूमि की अपेक्षा | ४ का भंग जानना। ४ के भंग 1-४ के भंग ऊपर के । ४-४ के भंगों में ४-४ के अंगों में | ४ का भंग-ऊपर के
में में कोई नरकगति के समान में कोई १ भंग से कोई १ उपयोग नरक गनि के समान
उपयोग जानना जानना
| जानना । जानना (३) मनृत्य गति में
सारं भंग १ उपयोग !() मनग्य गति में सारे भंग | १उपयोग ४- -४.५-४ के भंग-को ४-५-४-५-1 के ४-५-४-५-४ के ४-४-५ के भंग-
कोनं 1-1-4 के मंग '४-४-४के भंगों नं०१८ के ६-६-७-६ । सारे भंग जानना भगों मेंसे कोई 1 के ६-६-६-६ के | जानमा में में कोई १ के हरेक भंग में से ऊपर १ उपयोग । हरेक भंग में से पर्याप्तवन
उपयोम जानना के समान क्षेत्र २ ज्ञान
অনন্য
। शेष २वान घटाकर घटाकर ४-५-४.५.-४ के
के भंग जानना भंग जानना
(४) देवगति में
१ भंग १ उपयोग (४) देवगति में
१ उपयोग |४-१के भंग-ऊपर के ४-४ में में कोई ४-४ के भंग ४ का भंग ऊपर के नरक का भंग जानना | ४के भंग में से नरक गत के समान |१ भंग जानना गनि के समान जानना कोई १ उपयोग जानना
उपयोग जानना ।
जानना