________________
चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं. ५८
कुमति-कुश्रुत ज्ञान में
४ प्रारण
१ मंगभंग को नं. १ देखो (१) नरक-मनुष्य-देवमति में सोनं.१६-१८-कोनं०१६ ! (३)मरक-मनग्य-देवमति को नं० १६-१८ को.नं१६
।१६ देखो १८-१६ देखो । हरेक में
१५-१६ देखो .0 का भंग-पो नं.
। ७ का भंग को.नं. १५./ १६-१८-१६ देखो !
। १८-११ देखो 1) नियंच मनि में । १ भंग १ मंग (२) तिर्यंच गति में
भंग १भंग १०-८-८-१-६-४-१० को नं. १७ देखो | को. नं०१७ ७-१-६-५...४-३-७ को० नं०१७ दखो | को० न०१७ के भंग-को० नं. १७
देखो
के भंग को नं०१७ |
देखो ५ मंजा १ भंग १ भंग
भंग १ भंग __ को नं. १ देखो । चारों गलियों में हरेक मैं | को० नं. १६ से | कोन चारों गनियों में हरेक में पर्याप्तवन जानना । पर्याप्तवत ४ का भंग-कोनं १६१६ देखो से १६ देखो | पर्याप्नवत् जानना
जानना में ११ देखो । कोई गति कोई १ गति
' कोई १ गति कोई १ गति कोन १ देखो । चारों गति जानना ।
चारों गति जानना । । को० नं० १६ से १६ देखो'
को नं.१६ से देखो ७ इन्द्रिय जाति १ जाति जानि
१ जाति १ जाति को००१ देखा (१) नरक-मनग्य-देवगति में बोलनं०१६-१८- को नं०१६- नरक-मनुष्य-देवगनि को० नं० १६-१८- को० नं०१६हरेक में
१८-१६ देखों में हरेक में १६ देखो १८-१६ देखो पंचेन्द्रिय जानि जानना ।
पंचेन्द्रिय जाति जानना को.नं. १६-१८-१६देखो।
। को नं०१६-१८-१२ देखो नियंच गति में | जाति
१ जाति ) तिच गति में । १जाति १ जाति '५-१-१ के भंग वाको १७ देखो | कोन. १७५-१के भंग को० . को नं०१७ देखो, को नं०१७ १३ देखो
देखो काय
काय काय ।
| १ काय काय को० नं० देखो (१) नाक-मनुष्य-देवगति में | को.नं.१६-१८-कोन: १- (1) नरक मनुष्य-देवगनि कोन०१६-१-कोन०१६हरेक में
| १५-१६
में हरेक में । १६ देखो १५-१६ देखो १ चमकाय जानना
१.मक य जानना । को नं०१६-१८-१६ देखो
को.न. १६-१८-१६ देखो