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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं०५८
कुमत्ति-कुश्रु त ज्ञान में
स्थान सामान्य प्रालाप
पर्याप्त
अपर्याप्त
नाना जीवों की अपेक्षा
एक जीव के नाना एक जोब के एक
समय में समय में
नाना जीवों की अपेक्षा
जीप कं नाना । जीव के एक समय में | समय में
१ गुण स्थान ३ १--३ गुण जानना
मारे गुण स्थान | १ गुण ।
नारे नूगा १ गुण. चारों गलियों में हरेक में को० न०१६ से कोलन०१६ मे (१) नरक गान में ले | को० नं१६ से को० नं.१६ से १.७-६ गुग. गागर | १६ देखो । १६ देखो | गुरण
| १६ देखो १८ देखो | (२)तिपंच-मनुष्य-देवगति
में हरेक में सूचना-:) मंज नं०७१,
१-२ गुण० स्थानजानना ।
२ जीय समाम १४ । पर्याप्त अवस्था १ समास । १ समास ! ७ अपर्याप्त अवस्था
समास १समाम बो नं. १ देखो (१) नरक-मनुव्य-देवगति में को० नं १६-१८- कोन०१६. (१) नरक-मनुष्य-देवमति ! को० नं०१६-१२- को० नं. १६हरेवा में
१९ देखो १०-१६ देखी में हरेक में १३ देखो १८-१९ देखो १ संजी पं० पर्याप्त जानना।
| १ मंकी पं. अपर्याप्त को० नं. १६-१८-१६
अवस्य जानना
को.नं.१६-१-१९ देखा! (२) नियंच गति में १ समास १ समान (२)निन पति में
१ ममास । समास --१के भंग
को नं०१७ देखो। को० नं०१७ । ७-६-१ के भंग को० नं. को नं०१७ देखो । को.नं०१७ को नं०१७ देखो
देखो
१७ देखो पर्याप्त
१ मंच भंग
१ भंग १ भंग को देखो (१) नर-मनुष्य-देवगनि में नं०१६-१८ को न०१- (१) नरक-ष्य देवगन को नं०१६-१८. को नं०१६. हरेक में
११६ देखी १५-१६ देवो में होने १६देवो१८-१६ देखो ६ का भंग-कानं०१६
| ३ का भंग-०२.१६१५-१६ देतो
१८१६ देखी (२) तिचंच गति में
भंग १ भंग (0) नियंच गनिमें ! १ भंग भं ग ६-१-४-६ के भंग को० नं०१७ देखा । को.नं. १31३-३ के भग को० नं कोनं. १३ दलो को० नं०१७ को.नं.१७ देखो