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( ४२७ )
सूचना:- (१) कुमति - कुश्रुत इन दोनों ज्ञानों को मिश्र गुण स्थान में मिश्र संज्ञा हो जाती है । सूचना:- ( २ ) इन दोनों ज्ञानों को मिश्र गुण स्थान में मिश्र संज्ञा हो जाती है।
धयाना- को० नं० १६ से ३४ देखो ।
बघ प्रकृतियाँ- १ले २रे ३रे गु० में क्रम से ११७-१०१-७४ प्र० का बंध जानना | को० नं० २६ देखो |
उदम प्रकृतियां,"
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सत्व प्रकृतिष -
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संस्था धनन्दानन्त जानना ।
क्षेत्र - सर्वलोक जानना
स्पर्शन– सर्वलोक
।
काल- नाना बीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा सारे कुज्ञानी तंमुहूर्त से देशोन् अर्ध पुद्गल परावर्तन काल तक
जाति (योनि)
कुल
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११७-१११-१०० प्र० का उदय जानना | को० नं० २६ देखो । १४०-१४५ १४५ प्र० का सत्य जानना | को० नं० २६ देखी ।
जानना।
अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं। एक जीव की पेक्षा मादि कुज्ञामी अतंमुहूर्त से देशोन १३२ सागर काल तक उपशम या क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि ज्ञानी बनता रहे।
१-८४ लाख योनि जानना ।
११६|| लाख कोटिकुल जानना ।