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चौतीस स्थान दर्शन
(३९५ ) कोष्टक नं० ५४
संज्वलन क्रोध, मान, माया कषायों में
के हरेक अंगम से कर के समान मंज्जनन कपाय
४३-३८-३३ के हरेक भंग ३ घटाकर ३३-३५-२६.
में से पर्याप्तवतु संज्वलन ३७-४०-४८-४३.१६.३८..
कपाप ३ घटाकर ३४28-12-304 मंगजानन (B) मनुष्य गति
मारे भंग १ भंग
२९-३०-३१-३२-३५Y८-४३-३९-४-१६-१७- को.नं.१-देखो को नं०१८ देखो ६-४०-३५-३० के भंग ।
जानना भंग कोल नं०१५५१
(३) मनुष्प गति में
सारे भंग १ भंग ४६-४२-३७- २-२३-२२- ।
४६-३६-३०-६-४०-३५- कोर नं. १५ देतो कोनं०१८ ऐरो १६-१५-१४-१३ को हरेक |
३.के भंग को.नं. १० भंग में से ऊपर के समान
के ४-३६-३३-१२४३संज्वलन कपाच ३ घटाकर
३८-३- के हरेक मंग में ने ४.४३-36-२४-१६-१७-१६.
पर्याप्तबद मंचलन काय १३-१२-११-१०के मंग जानना
३ पटाकर ४१-०६-01 १० का भंग
१-४०-३५-३० के भंग की नं०१५ के १२के
जानना भंग में से ऊपर के समान
४) देव गति में माग-पाषा-लोभ कार्यों
४०-३५-३५-३६-३४-३०- मारे भंग १ भंग में से कोई २ कपाय घटा
३० के भंग को नं०१६को . १६ देखी को नं०१६ देखो कर १० का भंग जानना
के ४३-1८-३५-४२-३७१० का भंग
३३-३३ हरेक भंग में को.नं. १५ के ११ के
से पर्याप्तवत् संचलन कगाय भंग में से ऊपर के समान
३ घटाकर ४-६५-20.| माया, लोभ कंपार्यो |
३६-३४-३०-10 के भंग | में मे कोई 1 कपाम बटा
কালনা कर १० का भंग जानना । १०-१० का भंग खानी ।
एक दोन कपाय के निवार, में कोने के समान मानना
४७-१२-३८ के मंग मोग
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