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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं० ५४
संज्वलन क्रोध, मान, माया कषायों में
मंग
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भूमि की अपेक्षा को नं० १८ के ५:४५-४, के हरेक भंग में से ऊपर के समान विचार करो उसको छोड़कर शेष ३ कषाय घटाकर ४७
४२-३८ के भंग जानना (४) देवगति में
मारे भंग ४७-४२-३८.४६.४१-३- को० नं० १९ देखो कोनं०१६ देखो ३० केभंग को नं०१६ के ५०-४५-४१-४४-४४-४३४० के हरेक भंग में से ऊपर के समान संज्वलन कषाय३ घटाकर ४७-४२-३५-४६. ४१-३७-३७ के भंग जानना
सारे भंग १ भंग २३ भाव
सारे भंग १ भंग उपशम-चारित्र १. दायिक को न०५३ के ४२१) नरक गति में कोनं०१६ देखो कोन्नं। १६ देखो चारित्र, अवधि ज्ञान | में सराग संयम १. मनः २६-२४-२१-२८.२७ के
मन- पर्ययज्ञान मयमा- | पर्यय नान १, उपश:- भंग को० नं०१६ देखो !
संबम १६५ घटाकर (४१) चारित्र १, धाधिक (2) निर्यच मति में
सारे भंग १ भग (१) नरक मति में २२-२७ को० नं०१६देखो को मं०१६ देखो चारित ये ४ बोड़कर २४-२५-२७-३१-२६-20- को नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो में मंग कोन १६ देखो ३२.२६-२७-२ -२६-२६
(निर्वच गति में सारे भंग । १ मंग के भंग को.नं. १७ देखो
|२४-.२७-०७-२८.२३-कान०१७दखा कोनं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में
' सारे भंग १ मंग २ ५-२५-२४-२२-२५ के भंग ३१-२६-३०-३३-३०-३१. को० नं०१६ देखो कोनं०१८ देखो को नं०१७ देखो २७-३१-२६-२६-२८-२७-२६
(३) मनुष्य मति में मारे भंग १ भंग २५-२४-२७२५.१६-के
३०.-2७-८-३२को नं० १८ देखो को न०१८ देखो भंग को.नं.१८ देखो
कभंग बोलन०१:पी (४) देवगति में
सारे भंग भंग (४) व नि म
सारे भंग १ भंग २५-२३-२४-२६-२७-२५. को० नं १६ देखो को२०१६ देखो २६.२ ६.२४-२ को नं १६ देखो कोनं १६ देखो
२१-२५-२६ के भंग २५के भंग कोनं.१६देखो
को० नं १ दखी