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( ३७४ ) कोष्टक नं० ५३
प्रत्याख्यान ४ कषायों में
चौंतीस स्थान दर्शन ..| स्थान सामान्य छालास पर्याप्त
अपर्याप्त
नाना जीवों को अपेक्षा
एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में
समय में
नाना जीवों को अपेक्षा
जीव के नाना ।१जीव के एक समय में समय में
१ गुण स्थान ५
y मारे गुगा स्मान | १ गुण
मारे गुण १ गुराक १ से १ नुस्ग स्थान १ मे ५. नक के गुरण पपने अपने स्थान। सारे गुण में | (१) नरक गति में अपने अपने स्थान अपने अपने जानना के मारे गुणा० । से कोई
ले ४वे गुगाः के सारे गुण स्थान के बारे (१) नरक-देवगति में जानना () तिर्यच गति में जानना
मुरण से कोई १ से ४ गुण
१गुण (२) तिथंच-मनुष्य मति में
भोगभूमि में १५ गुण.
१-२-४ गुरण भोय भुमि में से ४ गुरण !
(३) मनुष्य मति में
६-२-गुग्ग. (४) देवगति में
१-२-४ गुरण. २ नोव समास १४ । ७पर्याप्त अवस्था
१ समास | १ समास |७ अपर्याप्त भवस्था | समास १ समाम को.नं.१देखो | (१) नरक-मनुष्य-देवमति में को००१६-१८-को० नं. १६-1(१) नरक-मनुष्य-देवगति को ०१६-१८-कोनं०१६
१६ देखो १८-१९ देखो। में हरेक में | १६ देखो १०-११ देखो १ मंशो५० पर्याप्त जानना
१ संजी पं० प्रर्याप्त जानमा को० नं०१६-१-१६
को० नं. १६-१८-१९ देखो
देखो 11) तिर्वच गति में
। समास १समाम (२) लियंच गति में
समास समास 5-1-1 के अंग को नं. १७ देखो को.नं. १७७ -६-१ के भंग गो. नं. को नं०१७ देखो को.नं. १७ को००१७देखो देखो | १७ देखो
देखो ३पर्याप्ति
गंग । १ भंग को नं०१ दरो नरक-मनुष्य-दंदगति में दो नं. १६-१3- कोन१५.(१) नरक-मनुष्य-देवनि को नं०१६-१८ को० नं०१६
१८-१९ देखो में हरेक
1 १८-१९ देखो