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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं. ४८
स्त्री वेद में
२१ यान
को नं. ४७ देखो
२२ शव पाहारक भिखकाय योग
पाहारकाय योग पुरुष बेद १, नपुसक वेद
ये ४ घटाकर (५३)
कानं०१६ देखो
भंग
१ध्यान को० नं.४ के समान को.नं.४७ देखो को नं. ४ | धर्म ध्यान नार और 140४५ देखो कोनं०४७ देखो जानना
देखो
गृथक्त्व वितर्क विचार शुक्ल ध्यान १, ५ घटाकर (1)
को नं०४७ के समान | सारे भंग १ भंग
मारे भंग !
१ भंग प्रो० मिनकाय योग १, को० नं. ४७ देखो को.नं. ४७ | वचनयोग 1, मनोयोग गर्ने अपने म्यान अपने अपने 4. मिथकाय योग १,
देखो | गो. काय योर के सारे भंग कार्माणकाय योग १.
| वै० काययोग १ ये १. जानना ये ३ घटाकर (५०)
घटाकर ) को. नं. ४ के समान
। (१) बिच गति में जानना परन्तु यहां स्त्री-वेदः
४१-४२-३६-३७ के भंग की जगह पुरुष वेद पटाना
को० नं०४७ देखो चाहिये और मनुष्य गति
परन्तु वहां स्त्री वेद की। में माहारककाप योगी का
जगह पुरुप वैद रटाना २० का भंग भी नहीं
चाहिये (२) मनुष्य गति में ।
४२-३३ रे अंग को न ! ४७ देखो परन्तु यहा
भी वेद की जगह पुरुष वेद घटाना चाहिये (३) देवगति में ४२-३७ के भंग-को। • नं. ४७ देखा परन्तु यहां ; | स्त्री वेद की जगह पुरुष
'चंद घटाना चाहिये। सारे भंग १ भंग । ३०
सारे मंग . १भन तिथंच गनि में कर्मभूमि में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान कुजान २. दर्शन २, तिर्यच अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान
। गति १. मनुष्यति ।
२३ भाष
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सारे मंग
को. नं०४७ के "| (१) नियंच