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प्र
-को० नं० १७-१८-१६ देखो ।
बंध प्रकृतियां १२० सामान्य मालाप से जानना ।
११२ मित्य पर्याप्त अवस्था में आयु ४ चबप प्रकृतियां – १०७ उदययोग्य १२२ में से स्त्रो वेद १, सूक्ष्म १, स्थावर १, भपर्यात १, आतप १,
सत्य प्रकृतियां - १४८ जानना ।
नरकवि २, माहारकद्विक २, ये नपुंसक वेद १, नरकविक २, तीयंवर प्र० १, ये १५ घटाकर
प्रकृति घटाकर १९२ जानना । नरकायु १, एकेन्द्रियादि जाति ४, साधारण १० १०७ प्र० का उदय जानना ।
संख्या - प्रसंख्यात जानना ।
क्षेत्र- लोक का धसंख्यातवां भाग जानना ।
स्पर्शन-सनाडी को घपेक्षा लोक का संख्यातवां भाग जानना । १६वे स्वर्ग से ३रे नरक तक आने की अपेक्षा रानु जानना, नव वेयक से
नरक में जाने की अपेक्षा मारणान्तिक समुद्घाट में पुरुष
३ नरक तक पाने के शक्ति की अपेक्षा है राजु जानना । मध्यलोक से ७ वेद का उदय होने की अनेक्षा ६ राजु जानना । काल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना ।
रहे ।
एक जीव की अपेक्षा अंतर्मुहूर्तसे नवसी (१००) सागर तक निरन्तर पुरुष वेदी ही बनता
प्रस्तर -- जाना जोवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की प्रपेक्षा एक समय से श्रसंस्पात पुद्गल परावर्तन काल तक पुरुष वेद को
धारण न कर सके ।
जाति (योनि) – २२ लाख योनि जानना, (नियंच ४ लाख, देव ४ शख, मनुष्य १४ साख ये २२ लाख जानना)
कुल ६३॥ लाख कोटिकुल जानना, (नियंत्र ४३॥, देव २६, मनुष्य गति १४ लाख कोटिकुल ये ८३।। लाख कोटिफुल जानना)