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चौतीस स्थान दर्शन
। २८६ ) कोष्टक नं०४१
औदारिक मिश्रकाय योग में
१व्यान को न०१७ देखो
२१ ध्यान मार्तध्यान ४, रोदध्यान ४, प्राज्ञा दि.१, . भपायवि०१, मुक्ष्मकिपा प्रतिपाती १, ११ । ध्यान जानना
(१) नियंच गति में ८-८-२ के भंग-को० नं०१७ देखो
(२) मनुष्य गति में 6-6-१-६-६ के मंग-कोनं. १८ देसो
को० नं०१७ देखो
सारे अंग को.न. १८ देखो
।
ध्यान को नं० १८ देखो
२२ मालव ४३ मिश्वात्व ५, अविरत १२॥ (हिसक ६ हिंस्य ६) कयाय २५, पौदारिक मिथकाय योग है
सारे मंग
१मंग (१) तिबंच गति में
अपने अपने स्थान के ! अपने अपने स्थान के १ले गुण स्थान में
सारे भंग जानना सारे मंगों में से कोई ३६ का भंग-एकेन्द्रिय जीव में- को० नं०
मंग जानमा १७ के ३७ के मंग में से कार्मारणकाय योग घटाकर २६ का भंग जानना
७ का भंग-द्वीन्द्रिय जीव में-ऊपर के ६६ | के भंगों में से अविरत ७ (हिंसक का बिषय +
६ हिस्य ये ७) पटाकर, अविरत ८ (हिसक के विपय २+ हिस्य ये८) जोड़कर ३७ का भंग जानना
- का भंन-श्रीन्द्रिय जीव में-ऊपर के ३७ | के भंग में से अविरत घटाकर विरत(हिमक के विषय + : हिस्य थे) जोड़कर १८ का। भंग जानना
३९ का मंग- चतुरिन्दिय जीव में कार के ३८ मंग में में अविरत घटाकर, अविरत १० (हिंसक, के विषय ४+६ हिम्य ये१०) जोड़कर ३६ का | जंग जानना
४२ का मंग-भमंजी पंचेन्द्रिय जीव में-ऊपर : के ३१ के भंग में से प्रविग्त १० घटाकर, अविरत ११. हिराक के विषय ५६ हिस्य ये ११) जोड़कर और स्त्री-पुरुष वेद ये २ जोडकर ४२ का | भंग जानना