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( ३२१ ) कोष्टक नं. ४७
!तीस स्थान दर्शन
पुरुष वेद में
१६ याहारका
माहारक, अनाहारक
(३) देव पति में १ भंग १भवस्या (३) देव गति में
अंग १ अवस्था । १ संजी जानना को.नं. १६ देखो को नं०१६ देखो १ संजी जानना वो० नं०१६ देखो को नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो
: को.नं० १६ देखो १मंग पवस्था ।
१मंग । १ अवस्था () तिर्यंच गति में
को.नं. १७ देखो कोज्नं०१७ देखो (२) तिन गति में कोन०१७ देखो कोनं. १७दखी १-१ केभंग
| १-१-१-१के भंग को नं०१७ देखो
' कोनं १७ देखो ग्राहारक ही
। (२) मनुष्य गति में
मारे मंग । १ सवस्या (२) मनुष्य गति में
सारे भंग १ अवस्था | १-१-१-१-१ के मंगकोर नं०१८ देखो कोनं०१ देखो
को. नं०१८ देखो कोनं० १८ देखों को.नं. १८ देखो को नं०१८ देखो
| (३) देव गति में
१ मग
१ अवस्था पाहारक ही
१-१के भंगकोन०१६ देखो कोनं. १९ देखो (३) देव गति में
१भग १अवस्था [को० नं.११ देखो १ याहारक जानना को० नं. १६ देखो कोन० १६ देखो को० नं० १९ देखो | भंग उपयोग
१ भंग १ उपयोग (१) तिर्यंच गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान कुमवधि ज्ञान. मनः अपने अपने स्थान के पर्याप्तवत जानना
४-५-६-६-५-६-६ के भंग जानना के मंग में से पर्यय ज्ञान २ घटाकर भंग जानना कोनं०१७ देखो भंग को नं. १७ देखो।
कोई:१ उपयोग |
() को नं. १७ देखो। को नं. १७ देखो को.नं.१७ देखो (१) तिर्वच गति में (1) मनुष्य गति में , सारे मंग १ उपयोग |४-१-४-४-४-६ भंग
५-६-६-७-६-3-५- को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो को० नं० १७ देखो ६-६ मंग
| (२) मनुष्य पनि म । सार भर उपयोग को००१८ देखो
४-१-६-४-६ के मंग को.नं.१८ बखो को नं०१५ देखो (३) देव गति में
१ भंग १ उपयोग को नं०१८ देखो । ५-६-६ के मंग । सारे भंगको नं०१९ देखो () देव गति में
भंग
उपयोग को नं०१६ देखो
४-४-६- के भंग को नं.१६ देखो को नं०१६ देखो को न०१६ देखों
२० उपयोग केवल ज्ञान, केवल दर्शनोपयोग २ घटाकर (१०)