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चाँतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नम्बर ४५
कारण काय योग में
४२-३७-२२ का भंग को नं०१७ के ४३-३८३३ के हरेक भंग में से औ० मित्रकाय योग घटाकर ४२-1-३२ के मंग नानना (1) मनुष्य गति में १-२ -१६षं गुरण में ४३-३८-३२-१ के भंग कोल नं० के ४४. ३६-३३-२ के हरेक भंग में से मौ० मित्र काययोग १ पटाकर ४६-३८-३२-१ के मंग जानना १ का भंग को.नं.१८ के समान जानता भोग भूमि में ले ४थे गुरग में ४३-३०-३२ के भंग को. नं०१८के ४४४६-३३ के हरेक मंगों में से मौ० मिथकाययोग १ पटाकर ४३-३८-३२ के भंग मानना (४) दंव गति में १-२-४ये मुख० में ४२-३७-३२-४१-३६-३२-३२ केभंग को नं०१६ के ४३-३८-३३-४२-३७-१३३३ के हरेक अंग में से वै० मिथ कायाम १ घटाकर २-३७-३२-४१-२६-३२-३२ के भंग जानना
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३माव
उसम-चारित्र, मनः पर्यय कान १, कुपवधि कान १. संयमा-संयम १, सरागसंयम१ये ५ घटाकर ४५भाव जानना
४८ (१) नरक गति में १ले विमुग्म २५-२७ के मग को० नं. १६ देखो (२) तिर्वच गति में ले रे गुण. में २४-२५-७-२७-२२-२३-२५-२५ के भंग को. नं०१७ देखो
सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे मंग जानना कोनं०१६ देखो
सारे मंग को.नं. १७ देखो
१ मंग अपने अपने स्थान के | सारे हरेक मंग में से कोई
१भंग जानना
१ मंग कोनं०१७ रखो