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प्रवाहना-निगोदिया जीव के त्यक्त शरीर को जघन्य अवगाहना धनांगुल के अनस्यातवें भाग जानना और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार
योजन तक जानना। सूचना:-(१) विग्रह मति में छोड़े हुए शरीर को अवगाहना रूप आत्म प्रवेश की अवगाहना बना रहता है। (२) केवल समुपात
में प्रतर और लोकपूर्ण अवस्था में वर्तमान गरीर के आकार ही है। बंध प्रकृतियां-११२ बंधयोग्य १२० प्र० में से प्रायु ४, नरकगति १, नरकगत्यानुपूर्वी १, प्राहारकद्विक २ वे ८ घटाकर शेष ११२ बंध प्र.
जानना उदय प्रकृतियां-६९ उदययोग १२२ प्र. में से महानिदा ३, मिश्र (सम्यक्त्व) १, औदारिकद्विक २, वैक्रियिकद्धिक २, माहारकद्विक २, संस्थान
६. संहनन ६, उपचात १, परपात १. उच्छवास १, पातप १, उद्योत १, विहायोगति २, प्रत्येक १, साधारण १ स्वरद्विक २,
ये ३३ घटाकर मप्र०का उदय जानना। सत्य प्रकृतियां-१४८ को नं० २६ के समान जानना । संख्या-अनन्तानन्त जानना । क्षेत्र सर्वलोक जानना। स्पर्शन--सर्वलोक जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय से तीन समय तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर क्षुद्रभव में ३ समय कम शुदभव में रहकर मरण करके
दुबारा विकह गति में कार्माणकाय योग धारण कर सकता है। उत्कृष्ट अन्तर ३ समय कम ३३ सागर के बाद विग्रह गति में प्राकर
कारिणयोग धारण करना ही पड़े। जाति (योनि)-- लाख योनि जानना । कुल- १६६0 लाख कोटिकुल जानना ।
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