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चौंतीस स्थान दर्शन
( ३१५ । कोष्टक नं०४७
पुरुष वेद में
६ का भंग
(२) तिपत्र–मनुष्य-देवगति
में हरेक में ६ का भंग-गो.नं. १७-१८- |
६ का मंग | को० नं०१७-१८-१९
देखो, लब्धि पE-५ । का भंग भी होता है
२०
-१ भंग र का भंग
|
१ मंग ७ का भंग
। १ भंग । ७ का मंग
१ भंग ६ का भंग (१) तिर्यच गति में।
७ का मंच-प्रसंी के
(२) तिर्यच गति में १० का मंग | ममृत्य-देवमति में हरेक
का मंग
का मंग
१० का भंग
४प्राण
१० को नं०१ देखो । (१) तिर्यच गति में
६ का भंग-असंजी के
को० नं०१७ के समान (२) तिपंच-मनुख-देवमति
में हरेक में १० का भंग- को नं.
१७-१८-१६ देखा -५ नंजा का० नं. १ को । (१) नियंच-देवनि में हरेव में
४ का भंग-कोन०१५
७ का भंग को न १७१८-१६ देखो
१ भंग ४ का मंग
१ भंग ४ा मंग
(१) निर्व. देवति में | (१) या वनात म ।
४ का भंग
१ भंग ४ का मंग
(२) मनग्य गनि में
४.३-२ के भंग कानं ? के नमान
६ गति नियंच-मनुष्य-देवगति
निव-मनुप्य-देवगति में |
| ४ का भंग को नं सारे भंग १ भंग ११-28 देखो ४-३-२ के भंग | ४-३-२ के (0) मनुष्य गति में सारं भंग | भंग
भों में से कोई ४ का भंग का. नं. ४ मा भंग का भंग १ भंग
देखो गनि १मति !
१गति में कोई १ | में से कोई१ तिरंच-मनुष्य-वननि । ३ में से कोई १ | में कोई। गति १ जादि १ जाति
जाति १ जाति नीनों गलियों में । हरेक में १ पंचन्द्रिय जानि । जानना को० नं. १३-१-१६
७ टन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जानि
नीनो गनियों में हरेक में १पनेन्द्रिय जाति जामनः वो नं. १७-१८-१९ देखो