________________
( २६४ ) कोष्टक नं०४३
वैक्रियिक मिश्रकाय योग में ।
चौतीस स्थान दर्शन * स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त
अपर्यात
नाना जीवों की अपेक्षा
एक जीव के नाना समय में
एक जीव के एक समय में
१ गुण स्थान ३ ।। मूचना१-२-४ ये ३ गुण. । यहां पर पर्यास
अवस्था नहीं होती है।
२ जीव समास संजी पंचेन्द्रिय अपर्याप्ति ।
सारे गुण स्थान १ गुण स्थान (१) नरक गति में-१ले ४थे मुरण जानना । अपने अपने स्थान के । को.नं.१६-१६ देखो (२) देवगति में
| सारे गुण. जानना १-२-४ ये ३गरण स्थान जानना
'को० न०१६-१७ देखो की.नं०१६-१६ देखो
समास
१ समास (१) नरक और देवगति में हरेक में
बोलन०१६-१६ देखो | को.नं. १६-१६ देखो १ संगी पंचेन्द्रिय अपयन जीव समास जानना । को० नं०१६-१६ देखो
भंग
१ मंग (१) नरक और देवगति में हरेक में | को० नं०१५-१६ देखो | कोनं०१६-१६ देखो
का भंग को० नं० १६-१६ देखो लब्धि मा ६ पयोति
३ पारिन
को नं. १ देखी
१ मंग
४ प्राण
को.नं. १ देखो
११) नरक ग्रोर देवगति में हरेक में ७ का भंग को० नं. १६-१६ देखो
को० नं०१६-१९ देखो को० नं०१६-१६ देखो
५ संजा
को नं१ देखो
(१) नरक और देवमति में हरेक में ४ का भंग को० नं. १६-१६ देखो
मंग को० न०१६-१६ देबो : को नं० १६-१६ देखो
नरकगति, देवगति
(१) नरक मोर देवमनि जानना को. नं०१६-१६ देखो
गनि को न०१६-१६ देखो, कोनं १६-१६ देखो जाति
जानि कोनं १६-१६ देखो। को.नं.१६-१६ देखो
७ इन्द्रिय जानि
पंचेन्द्रिय जाति जानना ।
(१) नरक और देवगति में हरेक में