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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं० ४५
कार्मारणकाय योग में
न सामान्य प्राप्ताप | पर्याप्त
अपर्याप्त
नाना जीवों की अपेक्षा
एक जीव के नाना समय में
एर जीव के एक समय में
१ गुरण स्थान १-२-४-१३ ये मुख्य स्थान जानना
सूचनायहा पर पर्याप्त अवस्था नहीं होती है।
देखो
देखो
२ जीव समास अपर्याप्त अवस्था जानना को.नं.१ में देखो
सारे गुण स्थान
१ गुण स्थान (१) नरक गति में ले ये गुण स्थान | अपने अपने स्थान के / अपने अपने स्थान के (२) नियंच गति में-कर्मभूमि में १-२ गुम्म०, सारे गुण स्थान जानना सारे मुरा० में से कोई
भोगभूमि में -१-२-४ गुण जानना को० न १६ से १६ ! १ गुण (३) मनुप्य गति में-१-२-४-१३ गुरण
को० नं.१६ से १९ (४) देवगति में-१-२-४ बुरण जानना को०० १६ से १६ देखो
१ सगस
१ समास (१) नरक गति में
* अपने अपने स्थान के . अपने अपने स्थान के ३ का भंग-को० नं. १६ देखो कोई 1 समास जानना | समासों में से कोई एक (२) तिर्यंच गति में
व नं०१६ से १६ समास जानना ७-६-१के अंग को नं. १५ देखो देखो
को० नं०१६ से १६ (३) मनुष्य गति में
देखो १-१ के मंग–को० नं०१८ देखो (१) देवगति में १ का भंग-को.नं. १६ देखो
१ भंग (१) नरकादि चारों गतियों में हरेक में ! अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के
३ का संग-को० नं०१६ से १६ देवो ३ का मंग जानना । ३ का भंग जानना (२) मोगभूमि में
को० नं.१६ से १९ मो.नं.१६ से १६ ३ का भंग-कोनं-१७-१८ देखो
देखो नधि रूप ६ पर्याप्ति होती है
१ मंग
३ पर्याप्ति
को.नं.१ देखो
१मंग
४प्राण
को००१ देखो