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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं०४२
बैत्रियिक काय योग में
स्थान
मामाग्य पानाप
पर्याप्त
प्रपयांश
नाना जायों को अपना
एक जीव की अपेक्षा । नाना.समय में
एक जीव की अपेक्षा एक समय में
६-७-८
'गुरण स्यान ४ १-२-३-४ ४ गुना
___को नं.१६ देखो २जीवसमास मंत्री पंचेन्द्रिय पर्याप्त
सारे गुगा स्थान . (0) नरक गति में और देवगति में रेक में | को.नं.१६-१९ देखी। को १ मे ४ तक के गुण जानना
१ गुगा स्थान । मूवनानं. १६-१६ देखो । यहां पर अपर्याप्त
। अवस्था नहीं होती
(१) नरक और देब गति में हरेन में १ संजी पंचन्द्रिय पर्याप्त जानना को नं. १६-१६ देवो
पमाप्ति
को नं० १ देखो
(1) नरक और देव गनि में हरेक में ६ का भंग को नं०१५-१६ देखो
भंग को नं०१८-१९ देबो | को० नं०१५-१६ देखो
४प्राना
को० नं. १ देखो ,
(१) नरक और देवगनि में हरेक पं १. का भंग को ना १६-१६ देखो
१ अंग को न० १६-१६ दस्खो को नं. १६-१६ देखो भंग
भंग को नं. १-१ देखो को नं० १६-१६ देखो
भग
५ मंज्ञा
कोल नं०१ देवी
( नरन पर दब गति म हरेक में ४ का भंग को० नं० १६-१६ दरो
६ गति
नरक मनि, देव पनि ।
(2) नरक मोर नंद गति में जानना को.नं.१६-१६ दबो
गति दो में में कोई
.
गति गति: दो में में कोई १ गति
७ इन्द्रिय जाति
पंचेन्द्रिय जाति ।
जाति को० नं०१६-१६ देखो को नं. १६-१६ देखो
(१) नरक चोर दर मनि में हरेक में १पंचेन्द्रिय जानि जानना को नं. १५-१६ देखो