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1 २८८ ) अवगाहना-बनांगुल के असंख्यात भाग में कुछ कम एक हजार योजन तक जानना। बंध प्रकृतियां-११४ दंधयोग्य १२० प्र. में से नरकद्विक २, नरकाबु १, देवायु १, याहारद्विक २, ये ६ घटाकर ११४ प्र०का बंध जानना । उदय प्रकृतियां-६८ उदययोग १२२ प्र. में से महानिद्रा ३, मिथ सम्यक्त्व १, नरादकर , नरकायु १, देवद्विक २, देवायु, वैक्रियिकहिक २,
माहारकलिक २, तिथंच गत्यानुपूर्वी १, मनुष्य मत्यानुपूर्वी १, परमात १, उच्छवास १, प्रातप १, उद्योत १, विहायोगति २,
स्वहिन, ये २४ घटाकर प्र. का उदय जानना ।। सत्त्व प्रकृतियां-१४६-नरकायु, देवायु १२ पटाकर १४६ प्र० का सत्य जानना । संख्या-अनन्तामन्त जानना। क्षेत्र-मवलोक जानना। स्पर्शन-मर्थलोक जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की प्रवेक्षा एक समय से अंतमुंहून तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जोर की अपेक्षा एक समय से ३३ सागर तक और एक समय से अंत हतं तक एक
कोटिपूर्व तक औदारिक मिश्रकाय योग की प्राप्ति न हो। जाति (पोनि)-७६ लाख योनि जानना (नरकगति ४ लाख, देवगति ४ लाख ये ८ लाख घटाकर दोष ७६ लाख योनि जानना) कुल-१४ लाख कोटिकुल जानना । (को० नं. ४० देखो)