________________
कोष्टक नं.४१
प्रौदारिक मिथकााय योग में
चौतीस स्थान दर्शन २ । ३४-५
।।
४०का भग-सज्ञी पचन्द्रिय जीव में की 'नं.१ ४४ के भग में में कार्मारकाय योग १ घटाकर ४३ का भंग जानना
-रे गुरण स्थान में ३१-३२-२६-३४-३७ का भंग-ऊपर के ले गुगण के ३६-३७-३८-३६-४२ के हरेक मंग में से मिथ्यात्व ५ घटाकर ३१-३२-३३-३४-३७ के भंग जानना
३८ का भंग - ऊपर के संजी पंचेन्द्रिय जीव के। ४३ मंग में से मिथ्यात्व ५ घटाकर ३ का भंग जानना
vथा मुरण स्थान यहां नहीं होता
२. भोगभूमि में-ल रे ४थे गुण में ४२-३७-३२ के भंग-को.नं.१० के ४३. ३८-३३ के हरेक भंग में से कर्माणकाय योग १ घटाकर ४२-३७-३२ केभंग जानना
(२) मनुष्य गति में १३-३८-३२-२ के मंग-कोनं०१८ के ४४-1 ३६-३६-२ के हरेक भर में से कार्माणकाय योग १ घटाकर ४३-३८-३२-१ के भंग जानना
२. भोगभूमि में-ल २रे ४थे गुरण में ४२-३७-३२ के मंग–को० नं०१८ के ४३--३३ के हरेक अंग में से कार्माणकाय योग ! घटाकर ४२-३७-३२ के भंप जानना
४५ (१ तिथंच गति में २४.५-२७-२७-२२-२३-२५-२५-२४-२२-२५ के भंग को.नं० १७ के समान जानना
(२) मनुष्य गति में ३०.२८-३०-१४-२४-२२-२५ के भंग-को नं०१८ के समान जामना
२३ भाव
४५ प्रदभि ज्ञान १, मनः पर्वमजान, उपञ्चमसम्यक्त्व १ उपसमचरित्र १ नरक गति १, देवगनि, संयमासंयम १, सरागसंयम १.ये ८ भाव घटाकर ४५ जानना
सारे भंग को २०१५ देखो | को० नं.१७ देखो
सारे मंग को० न०१८ देखो । को० न०१८ देखो