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चौतीस स्थान दर्शन
( २४० ) कोष्टक नं. ३३
सकायिक जीवों में
१५) भोगभूमि में
(५) भोग भूमि में ३ का मंग को० नं०१७-१८ के
का मंग को० नं०१७समान जानना
१८ के समान जानना १६ भव्यत्व
१ मंग १अवस्था भव्य, प्रभव्य चारों गतियों में हरेक में | अपने अपने स्थान| अपने अपने चारों गतियों में हरेक में | भंग १अवस्था
२-१ के भय को न०१६ । के मंगों में से स्थान के मंगों। २-१ के भंग की० ० | पतिवत् जानना | पर्याशवत् ११ मा जानभा कोई १ भंग में से कोई 1 १६ से १६ के समान ।
जानना जानना अवस्था जानना जानना १७ सर करव
मारे भंग १सम्यक्त्व
J सारे मंग सम्यवस्व को० नं. २६ देहो। (1) नरक गति में अपने अपने स्थान अपने अपने | मिथ घटाकर (५) पर्याप्तवत् जानना | पर्याप्तवत् १-१-१-३.२ के भंग को.नं.। के सारे भंग स्थान के सारे | (१) नरक गति में
जानना १६के ममान
जानना भागों में से १-२ के भंग को.नं. (२) तिथंच गति में !
१६के समान जानना । १-१-१-२के भंग हो. नं० ।
सम्यक्त्व (२) नियंच गति में १७ के समान
जानना १-१ के भंग को.नं. (३) मनुष्य गति में ।
१७के समान जानना १-१-१-६-३-२-३-२-१ के भंग ।
(३) मनुष्य गति में को० नं १८ के समान जानना
१-१-२.५-2 के भंग (6) देवगति में
को.नं.१८ के ममान | १-१-१-२-३-२ के भंग को.
जानना मं० १९ के ममान जानना
(४) देवगति में (५) भोगभूमि में
१-१-३ के भंग को १-१-१-३ के भंग को० नं.
नं०१६ के समान जानना १७-१८ के समान जाना
(५) भोगभूमि में
-१-२ के भंग की नं. १७-१% के ममन
जानना १ भंग १ अवस्या ।
१ अवस्था संज्ञो, असंज्ञी (१) नरक न देव गति में । अपने अपने स्थान | अपने अपने । (१) नरक व देवगति में | पर्याप्तव जानना पर्याप्तवत् जनना