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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं० ३५
सत्य मनोयोग या अनुभय मनोयोग में
७ वे मुरण स्थान में १४ का मंग-ऊपर के ६वे गुरा० के १४ के भंग हो जानना
ले गुण स्थान में ८ का भंग-ऊपर के १४ के भंग में से हास्यादि ६ नोकषाय घटाकर - का भंग जानना बे मुग० के २रे भाग में ६ का मंग कार के.
के भंग में से नपुसक वेद घटाकर ७ का
भंग जानना हवे गुरण के रे भाग में ७ का भंग-ऊपर के -
के भंगों में से स्त्रीवेद घटाकर ७ का मंग। जानना वे मुग के ४थे भाग में ५ काभंग-ऊपर के ६ के
भंग में से पुरुषवेद घटाकर ५ का भंग जानना हवे गुग के ५वे भाग में ४ का भंग-ऊपर के ५
के मंग में से कोषकषाय घटाकर ४ का भंग ।
जानना •वे मुरण के दे भाग में ३ का मंग-कसर के ४
के भंग में से मानकषाय घटाकर ३ का मंग
जानना धे गुरण के वे भाग में २ का भंग-ऊपर के ३
के मंग में से मायाकषाय घटाकर २का भंग । जानना
१. मुशा में २ का मंग-परकेके भंग में से वेद ३, क्रोष-मान-मायाकषाय ३ ये ६ घटाकर २का ) भंग जानना
११-११-१३वे गुरण स्थान में १का मंग ऊपर के दो के भंग में से लोमकपाय १ घटाकर १ का भंग अर्थात् सत्य मनोयोग या अनुमय मनोयोग इन दोनों में से कोई योग