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( २६६ ) कोष्टक नं०३५
चौंतीस स्थान दर्शन
असत्य वचनयोग या उभय वचनयोग में
१ भंग
२३ भाव
को००२६ देखो
४६ चारों गतियों में हरेक में को.नं.३६ के समान भंग जानना
सारे मंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना को न० २६ देखो
अपने अपने स्थान के (हरेक भंग में में कोई १
भन जानना कानंदेखो
अवगाहना को नं. ३५. समान जानना । चंब प्रकृतियां-को न० २६ के ममान जानना। उदय प्रकृतियां-१०१ को नं. ३५ के समान जानना। सत्त्व प्रकृतियां-१४८ को नं० २६ समान जानना । सख्या-असंख्यात जाननः ।। क्षेत्र-लोक का असंस्थातवां भाग जानना । स्पर्शन-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वलोक जानना । एक जीव की प्रोक्षा लोक का असंख्यानयां भाग पर्याच - राजु जानना (को०० २६ देखो) कान-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय से अत्तएतं तक जानना । अन्तर-मना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव को अपेक्षा अंतमुंहतं प्रसंख्याप्त पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष न हो सके तो
अमत्य वचन योग या उभय वचन बोग इनमें से कोई भी एक योग अवश्य धारण करना पड़े। जाति (योनि)-६ लाग्न योनि जानना । (को० नं० ३५ देखो) कुल--१०८॥ लाख कोटिकुल जानना । (को० नं० ३५ देखो)