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( २६६ ) कोष्टक नम्बर ३८
असत्य वचनयोग या उभय वचनयोग में
चौंतीस स्थान दर्शन ० स्थान | सामान्य मालाप
पर्याप्त
अपर्याप्त
नाना जीवों की संपरा
एक दीव के नाना समय में
एन जीव के एका समय में
सार गुण स्थान सपने अपने स्थान सारे गुरु- जानना
मुरग स्थान
सूचनान(२ में में अपने यहां पर अपर्याप्त अपने स्थान में से कोई' अवस्था नहीं होती १ गुण जानना है।
१ भंग
१ गुण स्थान १ से १२ क के गुगा | चारों गलियों में-१ से १२ तक के गुण अपने
अपने स्थान के समान गुण जानना
को० नं० २६ दलो २जीब समास संज्ञी पंचेग्न्यि पर्याम
चारों गतियों में हरेक में
१ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त अवस्था जानना ३ पर्याप्ति कोन-१ देखा
चारों गलियों में हरेक में
६ का मग को न०२६ के समान जानना ४ प्राण को००१ देखो
चारों गतियों में हरेक में
१० का भंग का० न० २६ देखो ५ संज्ञा को.नं.१ देखो
चारों गनिय में हरे में को नं० २६ के समान मंग जानना
१ भंग का भग
६ का भग
१ मंग १० का भंग
१ भंग १० का भंग
सारे भग
१ मंग अपने प्रपन यान के अपने अपने स्थान के । मारे भंग जानना सार भंगों में से कोई ।
१ मंग जानना १ गति
१ गति : चारों के से कोई १ गति चारों में से कोई १ गति
चारों गनियां जानना
को.नं.१ देखो । ७ इन्द्रिय जाति १
पचन्द्रिय जानि
चारों गतियां में हक में १ सभी पंचेन्द्रिय जाति जानना
उसकाय
। चारों गतियों में हरेक में १ प्रसकाय जानना