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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं०३३
त्रसकायिक जीव में
३
F.
(३) मनुष्य गति में
(२) निर्यच गति में । ३-३-४-३-४१ के भंग को
२ का भंग को० . १७ नं. १८ के समान जानना
के समान जानना (४) देवगनि में
(३) मनुष्य गति में । ३-३ के भंग को० नं०१६
२-३-३-१ के मंग को० . के समान जनना
नं०१८ के समान जानना (५) भोग भूमि में
(४) देवगति में ३-३ केभंग को नं०१७
२-२-३-३ के अंग को १८ के समान जानना
नं०१६ के भगान जानना| (५) भोग भूमि में २-३ के भंग कोनं०१७
१८ के समान जानना १३ संयम सारे भंग । १ संयम |
सारे भंग १ संयम को००२६ देखो । (१) नरक गति में-देव गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान प्रसंगम, सामाबिक, छेदो- पर्याप्तवत् जानना यांसवत् जानना
१असंयम जानना | सारे मंग जानना के सार भंगों में | पस्थापना, यगाण्यात ये | को० न० 1-18 देसो
से कोई ४ संयम जानना (२) नियंच गनिमें
(१) नरक व देव गति के १-१ के भंग मो० नं .
१वा भंग को नं0-1 देखो
के समान जानना (३) मनुष्य मनि में
(२) तिर्यच गनि में १-१-३-२-३-२-१-१ के मंग
१ का भंग को.नं.१७ को नं०१६ यो
के समान मानना (४) भोग भूमि में
३) मनुष्य गनि में १ का भग को नं. १७
१-२-१ के भंग को० नं. १८ के सपान जानना
१८ के ममान जानना (४) भोर भूमि में १ का भग का नं०.. १% के समास जानना |
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