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( २४५ )
गाना — लब्ध्य पर्यामिक जीव को जघन्य भवगाहना धनांगुल के असंख्यातवें भाग से लेकर उत्कृष्ट प्रवगाहना एक हजार (१०००) योजन तक महामत्स्य जानना ।
यं प्रकृतियां - १२० भंगों का विवरण को० नं० २२ से २६ में देखो ।
उदय प्रकृतियां - ११७ उदययोग १२२ प्र० में से एकेन्द्रिय जाति १ त १ साधारण १ सूक्ष्म १ स्थावर १, ५ घटाकर ११७ प्र० का स्वयं जानना ।
तर प्रकुमियां- १४८ को० नं० २६ समान जानना ।
संख्या - प्रसंस्थान लोक प्रमाण जानना ।
क्षेत्र – सनात्री की अपेक्षा लोक के प्रसंख्यातवें भाग प्रमाण जानना । केवलसमुदयात प्रतर श्रवस्था की अपेक्षा असंख्यात लोक प्रमाण जानना ।
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केवलसमुद्घात लोकपूर्ण अवस्था की अपेक्षा सर्वलोक जानना ।
स्पर्शन- सर्वलोक को० नं० २६ के समान जानना ।
काल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से लेकर दो हजार सागर और पृथक्त्व पूर्व कोटि काल तक
जानता ।
अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से लेकर श्रसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोश नहीं हो तो दुबारा स्थावरकाय से त्रसकाय में जन्म लेना पड़े ।
जाति (योनि) -- ३२ लाख जानना । (द्वीन्द्रिय २ लाख, त्रीन्द्रिय २ लाख, चारइन्द्रिय २ लाख, पंचेन्द्रिय तिर्यच ४ लाख, नारको ४ लाख, देव ४ लाख मनुष्य १४ लाख, ये ३२ लाख जानना ) |
कुल -- १३२|| लाख कोटिकुल जानना, (होन्द्रिय ७, श्रीन्द्रिय ८, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तियंच ४२ ।। नारकी २५, देव २६, मनुष्य १४ लाख कोटिकुल ये सब १३२|| लाख कोटिकुल जानना)