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( २२६ ) कोष्टक नं. ३०
चौतीस स्थान दर्शन
अग्निकायिक जीवों में
भग
१७ सम्यक्त्व ने गुगाल में
हैले मुग में १ मिथ्यात्व जानना
१ मिथ्याल जानना १५ संजी पल गृगा. में
ले गुण. में १प्रमंत्री
प्रसंगी जानना १६ आहारक
दोनों अबस्था पाहारक, मनाहारक १ले नुग में
१ले गुग में
दो में से कोई १पाहारक
को.नं.२३ के समान ।
.वस्था २० उपयोग
१ भंग 1 उपयोग | ले गुण. में
१ उपयोग बोलन०२१ देखो। ले गूगण में
३ का रंग
|३ के भंग में से। ३ का भंग पर्याप्तबन्३ का भंग ३ के मंगों में से ३ का भंग को०० १७ देखो कोई १ उपयोग,
कोई १ उपयोग २१ ध्यान १ भंग १ध्यान
मान को. नं० २१ देखो को नं० २१ के समान
का भंग 5 में से कोई | ले गुगण में । एका मंग ८ में से कोई | १ ध्यान । का भंग पर्याप्तवत् ।
। ध्यान २२ मानव
१ भंग
३७
। सारे अंग १ भंग को.नं.२१ देखो | नं०२१ के समान ११ से १५ तक के सारे भंगों में से| ले गए. में ११ से १८ तक के सारे भंगों में से
, सारे भग कोई १ भंग ३७ का मंग को.नं-१० सारे मंग १भंग
! के समान जानना । २३ भाव
२४ १ भंग १ भंग । २४
। १ भंग को.नं. २१ देखा ले गुणा में | १७ का मंग १७के भंग में
से ले गुण में पर्याप्तवत् जानना पर्याप्तवत् बानमा २४ का भंग को नं०१७के | को.नं०१८ देखो| कोई १ मंग ! २४ का भंग पर्याप्तवत समान जानना
जानना । जानना
सारे भंग
।
२४