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{ २३० ) कोष्टक नं० ३१
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चौंतीस स्थान दर्शन
वायुकायिक जीबी
.
६
२१ ध्यान
। ध्यान
.१
याभवत् जाननामों में से
[ १ गंग
१ भंग को० नं० २१ देखो कोनं. ३० के समान ! की मंग मैं से कोई१को २१ देखो
का भंग
सारे मंग । २२ प्रास्रव ३८
सारे मंग । १ मंग ।
१११ से १८ तक के को नं. २१ देखो को. नं०२१ के समान |११ से १८ तक के सारे मंगों में से | कोन के समान भंग जानना
सारे भंग | कोई भंग | २३ भाव २४
. भंग १भंग । २४ को. नं. २१ देखो को० नं० २० देखो १७ का भंग १७ के भंगों में से को.नं.३० देखो पर्याभवत् जानना। को नं०१८ देखो' १ भंग ।
" कोई : मंग २४ प्रवाहना- लण्य पर्याप्तक जीव की जपन्य पबगाहना धनांगुल के असंख्यातवा भाग प्रमाण जा ना मोर उत्कृष्ट मनगाहना (उच "
हो सकी)1 बंध प्रतियां--१७५को.नं. ३० के समान जानना । २६ वय प्रकृतियां -७७
। सत्य प्रकृतियां-१४४ संख्या-असंख्यात लोक प्रमाण जानना 1. क्षेत्र-मर्दनाक जानना स्पशन -सर्वनोक दानना। कल - नाना जीवों की अपेक्षा मचाल जानना, एक जीव की अपेक्षा भद्रभव से समम्यात लोक प्रमाण कार तक वासुकाय जीव ही बनता रह। अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा कोई पन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा क्षुदभव से असंस्थात पुदगल परावर्तन कान तक यदि मोमन ह'
मोहीम तो दुवारा वायुकाय जीव बनना ही पड़ता है। जाति (योनि)-७ लाख योनि बानना। ३४ कुल- लास कोटिफुन जानना ।