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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक २०३३
त्रसकायिक जीव में
१० स्थान सामान्य मानाप
पर्याप्त
अपर्याप्त
।१जीब के नाना १ जीव के एक नाना जीवों की अपेक्षा समय में
समय में
! एक जीव के नाना एक जीव के एक । समय में । समय में
नाना जीवों की अपेक्षा
१ गुण स्थान
को.नं. १८
खो ।
१४ चारों गति में से १४नक के गुण का नं०२६ ममान
अपने अपने स्थान को १ गुण
अपन अपन स्थार के पूरण | मारे पुरण स्थान | को० न०२६। चारों गति में सारे गुण स्थान को नं० २६ को नं० २६ देखो' के समान । को न० २६ के समान ! को ०२६ । देखो ।
जाना
देखो
२और समाम १० । एकेन्द्रिय मूक्ष्म पर्याप्त !
मूक्ष्म अपर्याप्त " बादर पर्याप्त
. . अपर्याप्त ये ४ वटाकर शेष (70)
को.नं.१देखो ।
१ समास ३-४ में से कोई : जीवसमास जानमा
१समास १ समास
१ मास पर्या अवस्था १-४ में से कोई । १-४ में से । अपर्याप्त अवस्था -४ में से कोई १ मंजी पंचेन्द्रिय पयांत १ जीव समास | कोई १ जीव-! चारों गतियों में हरेक में | १ जीव समास अवस्था जानना | समास जानना। संडी पंचेन्द्रिय
जानना चारों गनियों में होफ में
अपर्याप्त अवस्था जानना को.नं. २६ देखो
को० नं० २६ देखो ४ोष जीव ममास ।
नियंच गति में तिर्यच गति में जानना
४ शेष जीव-समास जानना को० नं०१७ देखो
! को.नं.१७ देखा
१ भंग चा गनियों में हरेक में । ६-५ के अंगों में |६-५ के भगों चारों गतियों में हरेक में | ३ का भंग ६ का भंग को० नं०२६ से कोई १ भंग में से कोई १ का मंग को नं० २६ समान जानना
भंग के समान जानना ५का भंग तिर्यच गति में
लब्धि रूप ६ मोर द्वीन्द्रिय से प्रसंगी पंचेन्द्रिय तक मन पर्याप्त घटाकर ५ का भंग जानना को.२०१७ देखो
पर्याप्ति
को.नं. १ देखो |
३का भंग