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। २२७ ) प्रवगाहना --लम्य पर्याप्तक जीव की अघन्य अवगाहना घनांगुल के असंख्यात. भाग प्रमाण जानना और उत्कृष्ट अवगाहना (उपनम्म न हो
मकी)। अध प्रकृतिपा-१०५ बवयोग्य १२०० में से नरकढिक २, नरकायु १, देवद्विक २, देवायु १, मनुष्यधिक २, मनुष्यासु १, वैकिपिकनिक २,
माहाद्विक २ तीर्थकर प्र०१, उच्चगोत्र १ से १५ घटाकर १.५ प्र. का बंध जानना । उदय प्रकृतियां-७७ को.न. २६ के ७८ में से उद्यो। १ घटाकर ७७प्र०का उदय जानना । सत्व प्रकृतियां-१४४ को० नं० २८ के १०५ में से नरकायु १ पटाकर १४४ का सत्व जानना । संख्या-पसंख्याल लोक प्रमाण जानना । क्षेत्र सर्वनोक जानना। स्पर्शन–सर्व लोक जानना। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना, एक जीव को अपेक्षा क्षुद्रभव से असंख्यात लोक प्रमारण काल तक अग्निफाय जीव ही बनता रहे। अन्तर--नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं एक जीव की अपेक्षा शुदभव से असंख्यात पुदगल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष न जा सके
तो दुबारा अग्निकाय जीव बनना ही पड़ता है। जाति (योनि)-नाख योनि जानना । कुल-३ लाम्ब कोटिफुल जानना ।