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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नम्बर १८
मनुष्य गति
१२ जान
सारे भगजान
। सार गंग के मंग मस कोई कृशान , जान५ वे (0), ६-2-४-३--१-१-के अंग अपने अपने स्थान के सारे भंगों में । पवधि जान 1. अपने अपने स्थान के शान जानना (१) कर्म भूमि में मारे भंग जानना से कोई
मनः पर्वयं जान १, मारे मंग जानना मे कोई जान मेरे गुगा में ३ का भंग जानना ज्ञान जानना । २ पटाकर (६) ।
जानना का मंग कुमति कुभुत.
३ केभंग में । २.३.३-१.२.३ के कुअवधि मान व कुजान।
भंग जानना जानना
जान जानना (१३ कर्म भूमि में व देवे गुगामे का भरा
गंग- मेरा का मंग २ के भंग का भग मनि धुनि से कोई१२ का भंग कुमति, कुश्रुति
| में से कोई १ अवधिजाये नोन ज्ञान जानना ! ये जान जानना
। ज्ञान जानना जान,जानना
ये गा में
का मंग के भंग वेगा- म 1-3 के भंग ४-६ के भगों का भंग मनि,
में कोई ४ का भंग प्रौ. काययोग | जानना में ने की: १ धनि, अवधि ज्ञान ये .
जान जानना की अपंक्षा मति, अति अवधि !
जान जानना का भंग जानया • मनः गर्गय जान का
वे गुण में ' का भंग भंराटना
३ का भंग का मर ग्राहारक पाय
पतिवन् जानना । योग का अपना मान, थति।
१६वे गन्ग में १ वेबन जान : केवल ज्ञान वधिमान 4: का भंग जानना .
केवनान जानना
जानना गुचना-ग्राहक काय ।
'बल समुपान की वांग में नया स्त्री और भपुमका :
• घनश में जानना वेद के उदय मे मनः पर्यय मान
(२) भोग भूमि में नही हानादिवोगा कर
में गुग में २ का भंग
२के भंग । मा० ४
का मग कृमनि.
में में कोई मे १ तक के गुण में भंग जानना ४ के भंग में कथति ये कमान
जान जानना का मंग मनि, अति,
से कोई
जानना | प्रवधि, मनः पय दान थे।
: ज.मना
गुगल में
का भंग
के अंग में का भम जानना
२ का भंग मति,
। से कोई १६वे १४वे गुण म केवल जान । १ केवल ज्ञान | धुति, अवधि जान
बान जानना केवल जान जानना
जानना । जानना का भंग जानना २) भीम भूमि में