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कोष्टक नम्बर २७
इन्द्रिय रहित (सिद्ध भगवान्) में
चौंतीस स्थान दर्शन क स्थान नाम नामान्य प्रालाप
पर्याप्त
अपयन
नाना जीवों की अपेक्षा
एक जीव की अपेक्षा एक मात्र की अपेक्षा नाना समय में एक मय में
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अतीत गुण स्थान जानना
बोव समास , , पयांप्ति
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मुचना-यहां भी अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है
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१ मा स्थान
जीच समास ३ पर्याप्ति ४ प्राण ५. संत्रा
गति ७ इन्द्रिय जाति
काप हयोग
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११ कपाय १२ ज्ञान १३ यय १४ दर्शन १५ नया १६ भव्यत्व १७ सम्पत्य १८ संगी १६ प्राहारक २० उपयोग २१ व्यान २२ मानव २६ भाव
अपपन संश गनि रहिन अवस्था इन्द्रिब। कार्य । योग ॥ ॥ अपगतवेंद्र प्रकषाय १ केवल ज्ञान
१ केवल ज्ञान १वेदनशान असयम-संयमासंयम-संयम ये ३ से रहित १ केवल दर्शन जानना
१ केवल दर्शन १केवल दर्शन अलेवा जानना पनुभय ॥ सायिक सम्यवस्व जानना
१क्षायिक सम्यक्त्व | १ क्षायिक सम्पनत्व मनुभय जानना अनुभम जानना २ केवल शाम केवल दर्शनोपयोग दोनों युगपत र दोनों युगपत जानना' २ मुगपत् जानना ध्यान रहित अवस्था जानना मानव .. ". सायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, धायिक सम्यक्त्व । ५ भाव जानना ५भाव जानना सायिक बीर्य, जीवत्व ये जानना सूचना-कोई प्राचार्य शापिकभाव, जीबल, ये १० भाव मानते हैं