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(ो) अगुगलवु, उपधान, परपात, उच्छवास ये चार जानना । (क) प्रातप १, उद्योन १. प्रप्रशस्तविहायोगनि १, प्रशस्तविहायोगति , प्रत्येक १, साधारण १, बादर १, सूक्ष्म १, स., स्थावर १, सुभग १, दर्भग १, अस्थिर १, शुभ १, प्रभ १, सुस्वर १. दुःस्वर १, पादेय ?, अनादेव १, यशःकीर्ति १ अरश कौति १, पर्याप्त १, अपर्याप्न १, तीकर प्र०१ये २५ जानना। इस प्रकार ये सब मिलकर ४+५+५+३+१ +६+६+४+४-|-४ + २४ =७ जानना। (७) गोत्रकर्म-उच्चगात्र १ नीचगोत्र १२ गौत्र जनना। () अंतरायकर्म ५-दानांतराय, लाभांतराय, भोगांवराय, उपभोगनराय, धीतिराय, ये ५ जानना ।
इस प्रकार ५+++२६+४३७२-१२ बंध प्रतियां जानना । उदय प्रकृतियां-१६ प्र. नरकगति में जानना को न १६ देहो। १०७ प्रतिर्मन गति में जानना को० न०१७ देखा।
१०२ प्र० मनृत्य गति में जानना को० न०१८ देखो। ७७ प्रदेव नि में जानना को० नं०१९ देखो। सत्व प्रकृतियां-१४८ में से १४७ नरकगति में जानना को००१ देखो । १४५ तिर्य व गति में जानना को० नं० १७ देखो।
१४८ मतपय गति में जानना नो.नं - देखो। १४०वगति में जानना बो० नं० ११ देखो। संख्या-असंख्यात लोक प्रमाण जानना । क्षेत्र-विग्रह गति मनोर. मारणाधिक समृदयात की अपेमा और कवतीनोका' ममूदान में मर्व लोक जानना । असनाडी की अपेक्षा लोक
का असंख्यातवा भाग जानना । १३ वे मुगम स्थान में प्रदर केवलसमुदवात अवस्था में असंख्यात लोक प्रमाग क्षेत्र जानना। स्पर्श न केवल समुदधान की अपेक्षा सर्वलोक और मारगाांतिक समुधात को अपना सर्वलोक धानना । लोक का प्रसंन्यातवां भाग अर्थात्
८ राजु । जब १६व स्वर्ग का देव फिसी मित्र जीव की नंबोवन के लिये नीमर नरक तक जाता है उस समय १६ वे स्वर्ग से मध्यलोक
रजु चोर मध्यनोकराज तकदो राजु इस प्रकार र जानना । R-नाना जीवों की अपेका सर्वकाल जानना । एक जोब वा बरक्षा मदनबसौ(200) नागर नक काल प्रमाण जानना।। अन्तर- ना जीदों की अपना कोई असर नहीं । एक जीत्र की अपना अदभव में अमष्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष नहीं हो
नो तो इसके बाद मनी पवेन्द्रिय में दद्वारा बन सकता है। ज नियोनि) लान जानना (नय गति ४ लाख, ६वति 4 ला. पंचन्त्रिय निर्यच ४ लाख, मनुष्य १५ लाख, ये २६ लाख जानना) कुल- १॥10 लाच कोटिकूल जानना. (नारक २५, देव २६, नियंत्र ४३।। मनुष्य १४ लाख कोटिजुल ये सब १०८।। लाख कोरिक्त जानना)
चना -तिचंच के ४६।। लाख कादिकुल के विशेष अन्तर भेद निम्न प्रकार जनना। १२॥ नाबादिकुल जपचा जीव के मानना ।
मथनचर मीमादिनार न मानन।। १० । " "पंट मचलन पानायके जानना। १२ " " नचर जीव के जानना ४३॥ लाख कोटिकुन जानना ।
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