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प्रवगाहना -लख्य पातक स्थावर काय के जीवों की बधन्य अवगाहना वनांगुल के मसंख्यातवे भाग विग्रह गति में जानना और उस्कृष्ट
अवगाहना एक हजार (१०००) योजन की स्वयं भूरमण द्वीप के वनस्पतिकाय कमल को जानना। र प्रकृतिया-०६ (१) पर्याप्त अवस्था में १२० प्रकृतियों में मे नरकटिक २, मरकायु १, देवद्धिक २, देवायु १, आहारद्विक २,०दिक २,
तीर्थकर प्र०१,ये ११ घटाकर १०६ प्र० बंध योग्य जानना। लब्ध्य पर्यातक मीव के भौ १०६.प्र. बध योग्य जानना
कारण इनके तिर्यंचायु और मनुष्यायु का बंध अपर्याप्त अवस्था में ही होता है। १०७ (२) अपर्याप्त अवस्था में नित्य पर्याप्तक अवस्था में तिथंचायु और मनुष्यायु का पंप नहीं होता है इसलिये ऊपर के
१०६ में मे ये र अाय पटाकर १०७ प्र० का बंध जानना (देखो गो. क. गा० ११३-११४) जयप्रकृतियां- उदययोग्य १२२ प्रकृत्तियों में से सम्पग्मिथ्यात्व १, सम्यक प्रकृति १, स्त्री वेद १, पुरुष वेद १, नरकद्विक २, नरकायु १,
देवद्धिक २, देवायू १, मनुष्यहिक २, मनुष्या७१, द्वीन्द्रिय-त्रोन्द्रिय-मन्दिष-पंचेत्रिय जाति ४, माहारकनिक २, क्रियकद्विक २, प्रौदारिक अंगयांग है, एक छोड़कर नेशर मंस्थान, मंहनन ६, विहायोगनि २, स्वरहिक २, स १, सुभग १,
भादेय १. उक्चगोत्र १, तोयंकर प्र.१ मे ४० घटाकर प्र० का उदय जानना। सत्य प्रकृतियां-१४५ मिथ्याम्ब मृगण स्थान में नरकायु १, देवायु १, नीर्थकर प्र० १ व ३ पटाकर १५ जानना ।
१४. मामादन गूगा में ऊपर के १४५ में से माहारकादिक २ घटाकर १४. की मन्ना जानना । संख्या-अनन्नान्न जानता । क्षेत्र मवनोक जानना। पान-सर्वलोक जानना । काल-नाना जीदों की अपेक्षा मर्वकाल, एक जीत्र की प्रोबा रकेन्द्रि के अद्रभव से असं त्यात गुदनलपरावर्तन काल प्रमाग जानना । प्रन्तर नाना जीवों की प्रामा अन्तर की एक जीव की अपेक्षा बदभव में दो हजार सागर और एक को पूर्व प्रभागा जानना । जाति (योनि)-५२ लाख योनि चानना । पृथ्वी जल, अग्नि, वाय, नित्यनिगोद, इनरनिनाद य हरान की लाम्म और प्रत्येक धनस्पति
की, लारु मिन्नका ५२ लाख यानि जानना । मुल-६७ लाग्य कोटिनल (पृतीकाय २८, जल काय, अग्निकाय , वायुकाय, बनस्पतिचाय २२ नागप कॉम्कुिल) जानना ।