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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं० २५
अमंशी पंचेन्द्रिय
क्र० स्थान सामान्य प्रालाप
पर्याप्त
घायर्याप्त एक जीव के नाना एक जीव के नाना |
। १ जीव के नाना १ जीव के एक समय में | समय में नाना जीवों की अपेक्षा | समय में | समय में
नाना जीवों की अपेक्षा
१ गुण स्थान
मिय्यान्व, सासादन, मिथ्यात्व गुगा स्थान
दोनों जानना
।१ गुग्म
दो में में कोई १ गुण.
२जीव समास २!
प्रगंजी पर्याप्ट अप० ।
१ गुगण में अमंत्री पर्याम जानना
पर्याप्ति मन पर्याप्ति घटाकर (५)
१ भंग ५ का भंग
ले रे गुग में । अमजी पं० अप्ति जाना
३ को० नं०२२ देखी
१ भंग ५ का भंग
१भंग ३ का भंग
! ।
१भंग ३ का भंग
१ले गुगण में ५ का भंग का० नं. १
समान जानना
१ भम
४प्राम मन-प्रारम पटाकर दोष
(६)
है का मंग
१ भंग का भंग
भन ७ का भंग
का मंग
मिनाबन. बचमबल
ले गगन में ६ का भग को० नं०१७ के '
समान जानना
च्छवाम ये ३ घटाकर ७) ले २ गुरण में
का भंग को० नं०१७ समान जानना
१ भंच ४का भंग
१ भंग ४का भंग
!
१ मंग
१ भंग ४ का भंग
का भंग
५ संज्ञा को नं. १ पेस्रो १ने गण मैं
. ४ का मंग को० नं. १के ।
समान जान । ६ गति
ने गुण में १ त्रिय गति
ले रे नगग ४ का भंग पर्याप्तचन्
१ले २रे गुरण में १ तिर्यच गति