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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं० २२
द्वीन्द्रिय
१२ ज्ञान
कुमति, कुश्रुत
१३ म * বাল
२
ले गुग में २ का भंग को न. १७ के। समान
ले गुण में १ असंबम १ले मुग्नु० में १ प्रचक्षु दर्शन
१५ लश्या
प्रशुमलेश्या
१ले गुण में ३ का भंग को० नं०१७ के समान जानना
१६ भवत्व
भव्य, सभब्य
१ले मुराक में दोनों जानना
भंगशान का भंग ! के भंग १ने २रे गुगा. में
२का भंग , २ केभंग में से में में कोई २ का मंग को.नं.
कोई १ज्ञान ज्ञान जानना १७ के नमान
जान जानना १ले २रे मुरण में
१ असयम १ले रे गुण में
१प्रचक्षुदान १ भंग १ लेश्या
३ का भंग १ लेश्या ३ के अंग । २रे रण में
| ३ के मंग में में से कोई ६ ३ का भंग को०० ।
से कोई एक लश्या जानना । १७ के समान
लेश्या १अवस्या । १अबस्था
दोनों जानना । १भत्र या दोनों में से दोनों में से ले गण में अपनी अपनी दोनों में से कोई १ कोई, २ जानना
अवस्थान की कोई १ अवस्था रेगण में
समान जानना | जानना १ एक भव्य हो जानना
१ भंग १ सम्यक्त्व १ले गुरम में
२ का मंग जानना | २ के भंग में १ मिथ्यात्व जनिता अपनी अपनी | कोई १
से गुगा ० मैं स्थान के समान । सम्पनरव सामादन जानना | जानना
जानना स्ने रे गुण में १ अनंजो जानना ।
१ अवस्था १- के भंग । दोनों जानना दोनों में मे ले २रे गुग में
कोई विग्रहगति में मनाहारक जानना
१७ सम्यक्त्व
मध्यात्व, सासा
१ले गुण में १ मिध्यात्व जानना
१ने गुरण में १ संजो जानना
१- संत्री
यमंत्री १६ अाहारक २
आहारक, अनाहारक
१ले नग में याहारक जानना