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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं० २३
क० स्थान सामान्य पालापः
पर्याप्त
एक जीव के नाना गक जीव के नाना
ममय में । ममय में
अपर्याप्त
१जीव के नाना १ जीव के एक नाना जीवों की अपेक्षा समय में
समय में
नाना जीवों की अपेक्षा
१गुण स्थान
मिथ्यात्व, सामादन
मिथ्यान्व गुण स्थान
मिध्वात्व, मासादन । दोनों जानना
१ गुरण दो में से कोई
गुरण
२जीव समास जान्दिव पर्याप्त प्रप
ले मुरग० में
त्रीन्द्रिय पर्याप्त जानना । । ३ पर्यानि मन पर्याप्ति षटाकर (५) ले गुरण में
। ५ का भंग को० नं. १७के ।
समान जानना
१ भंग का भंग
५ का भंग
१२ रे गुण में त्रीन्द्रिय प्राप्त जाना ।
१ मंग ५ का भंग | ले रे गुण में ३ का भय
३ का मंग को नं. २१ !
ममान जानना
लब्धि रूप ५ पर्याति मंग का भंग वचमबल, श्वासोच्छवाम ! ५ का भंग
ये घटाकर ५)
ले २रे मुगण में २क. भंग का नं. १ समान जानना
४प्राण
मन कल-चप इन्द्रिय प्रागा पटाकर शेष (७)
१ भंग का भंग
१ मंग ५ का भंग .
मुग में का भंग का नं०१७ के समान जानना
.
१ भंग
मंग
४का भंग
५ संश को.नं. १ देयो ने गुम्ग में
|Y का भंग को न.१७के ।
ममान जान। गति
गगा में .पि. गनि
| इले रे नगर में | ४ का भंग पर्यातबन्
१ले 7 गुण में १ तिर्यव नि