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ने भंग में-उपशम सम्यक्त्वो उपशम धेशी में १२ प्र. की सत्ता आनना ।
-रे अंगों में-क्षायिक सम्यक्स्वी उपशम यणी में १३६० की सत्ता जानना। १२१ १२वे गुण में १०१ प्र. की मत्ता जानना।
१ब गुण में ऊपर के १०१ प्रकृतियों में से (१२वे गुरए के अन्त में) जानावरणीय ५, वर्णनावरणीय (महानिद्रा ।
घटाकर), अन्तराय:, १६ घटाकर .प्र. की सत्ता जानना । ८५ १४वे गुग के द्विचरम समय में ५ प्र० की सप्ता जानना और चरम समय में १३ प्र० को सत्ता बानना । मनुष्यायु १,
वंदनीय २.उच्च गोत्र १, मनुष्यगति १, पचेन्द्रिय जाति, तीर्थकर, प्र०१सकाय, बादर १. पर्यात, सुभग १,
मादेय १, पशः कति १,इन १३ प्रकृत्तियों का भी मोक्ष जाते समय नाश हो जाता है। संख्या असण्यात जानना इस राशि में लब्ध्य पर्याप्तक मनुष्य भी सम्मिलित है। २६ क्षेत्र-लोक का असंख्यातयां भाग प्रमाण अढ़ाई द्वीर को अपेक्षा जानना प्रतर समुद्घात की अपेक्षा लोक का असंख्यात माग प्रमाण जानना लोकपूर्ण
समृदयात की अपेक्षा गर्वलोक जानना। ३० स्पर्शन-ऊपर के क्षेत्र के समान जानना। ३१ काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्व काल जानना एक जीव की अपेक्षा क्षुदभव से या अन्त हुतं स ४७ काटि पूर्व तीन पल्य तक निन्तर मनुष्य पर्याय
ही धारण करता रहे इस अवस्था में यदि मोक्ष नहीं हो तो दूसरी पर्याय धारण करे। ३३ अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव को अपेक्षा क्षुदमव तक मनृश्य न बने या असंख्यात पुद्गल परावर्तन काम तक
मनुष्य न बने। ३३ जाति (योनि)-१४ नान मनुष्य योनि जानना । ३४ कुत्त-१४ लाख कोटि शुल मनुष्य को जानना ।