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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं०१६
देव गति
- गीतील स्थान दर्शन
३२ गुण में
का भंग है के भंग में से रेल रे गुगा में
का भंग के संग में से है का भग कार के के काई १ ध्यान का भंग
कोई१त्यान भंग में माना बिचय धर्म । जानना | पर्याप्तवन् जानना
जानना ध्यान १, जोहबर ६ का भंग
परामा में
क. भंग है के भंग में से जानना
का भंग प्रार्तध्यान ४,
कोई ध्यान ४ये गुण में १. का भंग १० के भंग में में ध्यान ४, माज्ञा
जानना १० का भंग ऊपर के
। कोई १ ध्यान | विचय धर्म ध्यान है ये ।के भंग में अपाय पचय घरं
| जनम का भंग जानना ध्यान ?, जारकर १० का भंग
जानना २२ माधव सारे भंग १ भंग
मारे भंग , मंग मौ. मिथकाययोग १.. कामांगा काययोग १, अपने अपने स्थान के सारे मंगों में में मनोयोग ४, वधनयोग ४ अपने अपने स्थान सारे भंगों में से पौदारिक काययोग १, वैमिध काययोग १, सारे मंग जानना कोई १ भंग !4. काययोग १ये के मारे मंग बानना कोई १ भंग पा० मिब का , ये २ घटाकर (५०)
जानना घटाकर (४३) मा. कापयोग १.! ५०-४५-४१-४६
११ से १. ४३-८-३३-४२-३ -
मंगों में से नपुंसक वेद ४४-४०-४० के भंग
के भंगों में मे ३३-३: के भंग ये ५ घटाकर (५२) (१) भक्तविक देयों से १५वे
(१) भबनषिक देवों से स्वर्ग तक के देवों में
१६थे स्वर्ग तक के ले गुण. में
ले गुण में ११ से १८ नक देवों में ५० का अंग | ११ से १८ तक के के भंगों में से १ले मुरण में १ले गण में |११ में 15 तक मामान्य के ५२ के भंग में से | भंग को.नं०१८ कोई १ भंग ४: का भंग १ से १८ तक के के अंगों में से कोई काम गा काययोग १६.मिश्र देखो
जानना | सामान्य के ५२ के मंग | मंग को.नं. १-१ भंग जानना काययोग १२ घटाकर ५०!
मे से मनोयोग ४,
देखो का भग जानना
वचनयोग ४, 4. काय २रे गए. में
रे गुग में १० से १७ तक | योग १ ये घटाकर ४५ का भंग कार के |१० से १७ तक के | के मंगों में से ४३ का भंग जानना 10 के भंग में में मिथ्यात्व भंग को. नं०१८ कोई १ भंग | रेगरण में । २रे गण में १० से १७ तक ५ पटाकर ४२ तक के भंग
जानना ३८ का भंग ऊपर के १० से १७ तक केके भंगों में से कोई जानना
४३ के भंग में से ५ भंग का००१८१मंग जानना