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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नम्बर १८
मनुय गति
। ६वे भाग में-२४ का भंग ऊपर इन सौनों में से कोई
२५ के भंग में से मान सम्यक्त्व तीना ज्ञानों में कषाय १, घटाकर, २४ का से कोई जान, तीनों भंग जानना
दर्शनों में से कोई 1 दर्शन ७वभाग मे-२३ काभंग ऊपर क्षयोपशम लब्धि ५,
के २४ के मंग में से माया | तिर्यच या मनुष्य गतियों कपाय, घटाकर २३ का। में से कोई गति, | भग जानना
कोषादि चारों कषायो । १.व गुण में में से कोई १ कयाय,
२३ का भंग ऊपर के तीनों लिंगों में से कोई | | २६ के भंग में मे शोष-मान-१ निग, तीन शुभ वध्यावों | माया फवार ३, लिंग ३ मे | में मे कोई १ गुम लेण्या, घटाकर २३ का भंग जानना | संयमानंयम १, प्रज्ञान ।
११वे मुगा० में मसिद्धत्व १, भमत्व १.
का मंग 'ऊपर के २३ | जीवत्व १ये १३ का - ! के भग में में सूक्ष्म लोभ १, भंग जानना
यिक चारित्र १,ये २ घटाकर सूचना-इस १७ के मंग १का भंग जानना
मे भी ऊपर के समान ! १२वे गुगण मे अनेक प्रकार के भंग ।
का अंग ऊपर के २१ जानना भग में मे उपदाम मम्यकत्व व गूगण में के भंगों में मे उपनम् नारिव१येर घटाकर शेष कामंग | कोई १ भंग
१६ सायिक चारिप १ जोड़कर उपशमादि तानों सम्पस्यों जानमय • वा भंग जानना
में से कोई १ मम्यक्त्वों : वे गुण में मति मादि चामें जानों । १४का भग क्षायिक में से कोई जान, तोनों मम्यक्त्व १, क्षायिक पारित दर्शनों में से कोई दान
वन-जान १.केवम दर्शन १, क्षयोपशम लब्धि ५, ] दान-लाम-मोग-उपयोग-वीर्य ये | मनुष्यगति १. संज्वलन माविकाध ५, मनुवाति