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चौबीस स्थान दर्शन
( १४२ ) कोष्टक नं. १८
मनुष्य गति
नरकगति , लियंचमति १. देवगनि १ ये! घटाकर (१०)
सारे भंग
मारे मंग | मंग ३१-२६-३०-३३-०-३१- अपने अपन स्थान सारे भंगों में से उपशम मम्यक्त्व १ । अपने अपने स्थान सारे अंगों में
-१-6-56-२८-२३-[ के सारे मंग कोई भंग | उपमचावि १. के मारे मंग से कोई १ २६-२५-२६-२-२२-२१- जानना
जानना अवपिज्ञान १
जानना मं ग जानना २०-१४-१३-२७-२५-२६-१७ का कोई भंग १७ का मंग कोई मनः पर्य यज्ञान १, १७ का कोई १ भंग १७ का कोइ १ २६ के मंग । मंग ये ४ पटाकर (४६)
मंग (१) कर्म भूमि में
| (१) कर्म भमि में
० -२५-१०-२७-४- | न गुगा
१० गुरण में १७ के अंगों में २-२५के भंग जानना १ का भंग
| १७ का मंग में कोई १ मंग। (१) कर्म भूमि में नान ३ दर्शन २, लब्धि, कुमति, कुध ति, | जानना
ने गुरण में ले गगन में • मनुष्यगति १, कप य ४, लिग अवधिशानोममेकोई
३० का भंग पर्याप्त क १७ का भंग १७ के मंगों में ३. लश्या , मिथ्या दर्शन १,१ज्ञान, प्रचक्षुदर्शन
२१ के भंग में से कृषि पर्वाप्तवन जानना | में कोई समयम १, अजान १. प्रसिद्धत्व चक्ष दर्शन इन दोनों
जान १, घटाकर ३ का
भगजानना .१, पारिगामिाभाव ३, ३१में में कोई १ दर्शन !
भंग जानना । का भंग जानना दान-लाम-भोग
रे गुरग० में रे गा में । रेनुण में उपभोग-वीर्य में
२८ का भंग पर्यात के | १५ का भंग १६ के मंगों में २६ का भंग ऊपर के १ क्षयोपशम लब्चि ५
के भंग में मे कुमवधि, पर्वाप्तवत् जानना । से कोई १ के भंग में से मिथ्या दर्शन १, चारों गतियों में में
ज्ञान १, घटाकर २८ का'
भंग जानना अभव्य १, ये घटाकर २६ कोई १ गति, क्रोध
| भंग जानना का भंग गानना मान-माया-लोभ इन
व गुण में ४ गूगा में गूगण में चारों कषायों में से
! १० का भंग पर्याप्त के १७ का भंग १७के भंगों में का भंग कार के कोई ? कषाय, नौन
३ के भंग में में उपदाम पर्या बन जानना । मे कोई १ के भंग में प्रधि दर्शन १ वेदों में से कोई
सम्यक्त्व १, स्त्री वेद,
भंग जानना जारकर १० का मग जानना वेद, छः लेश्यायों में
नपुंसक बंद १,से घटाकर थे गुना में मे कोई १ लेण्या,
। ३३ का भग जानना : का भंग : मिथ्या दन ।,
मुचना -यह का ' म भाविक मम्बवन्द २, अमंवम १. अज्ञान ?
भंग कल्पनामी देव और मान ३, दर्शन ३, क्षयोपगम प्रसिद्धत्व १, भव्यत्व
१ले नरक में पाने वाले सम्यक्त्व, अयोपशम लब्धि या अभव्यत्व में में
जीवों की अपेक्षा जानना (देखो मो००मा० ३२७)