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चौबीस स्थान दर्शन
{ १२० ) कोष्टक नं. १८
मनुष्य गति
-- -- -- - +. वे गुण में
गण. में ग्राः1 हो ना वहां , (०) का भंग केवली १३वे गुम्म में . १३ का अंग ऊपर के १७ के 'मिथ्यात्व की पर्याप्त अवस्था में ममदधात की वस्या में 110) का भग कोई भंग में से प्रत्याभ्यान गय ४, अनन्नानव को कषाय का नया बंध कोई कषाय नही होती। कषाय नहीं होती पटाकर १७ का भंग जानना करता है। उस नये बंध के ग्रा- इसनि ग्य का भंग
११ का भंग पाहा के कार्य बाधा काल नक अनन्तानबन्धी के. जानना। रोय की मांना ऊपर के १३ ' उदय का अभाव होने मे अनन्तान-. ) भोग भूमि में |(२) भोम भूमि में 3.4- मंगों
मंग में में स्त्री वेद १, नपु- .बन्धी कषाय का उदय नहीं हो ने २रे मुरण में ले रे गुरण में में में कोई मंग कि वेद १ ये वेद घटाकर मक्रता है। उस जीव की अपेक्षा २४ का भंग पर्याप्तयत् । -- के भंग | जानना
११ का भंग जानना में जो कषाय ६ होते हैं उसका जानना पर्याप्तवत जानना जना-यहां वे गुना में , खुलामा निम्न प्रकार जानना।
ये गृण. में रम गुगण में ६-७-5 के अंगों गनिहार विशुद्धि संयमी के. कोष, गाल एयर, र १" का भंग पर्यात के 5-3-5 के मंग में से कोई भंग इन-ययनानी के और बाहर. इनमें से किसी एक कषाय की २० के भंग में से स्त्री पर्याप्तवत् जानना जानना काय योगी एक पुरुष वेद ही अप्रत्यागवान, प्रत्याख्यान, मज्वलन ' वेद. घटाकर ११ का ।
रूप अवस्थायें हास्य-रति या भंग जाना वे वे गुण में परति-गोक इन दोनों जोड़े में न १३ का भंग संज्वलन काई एक जोडा, तीन वेदों म पार नबनोकाय में कोई एक वेद म प्रकार : का । का मंग उनना । मंग जानना।
का भंग ऊपर के के भंग .:ले भाग में ७ का भंग ऊपर 2. में प्राव धा काल के बाद अनन्नान
? का भंग में मे हम्या :श्री कषाय को एक पत्रम्था जोड़ : नोकगाय घटाकर ७क, कर का भंग जानना ।। मंगमानना
का भग-ऊपर भंग २ भाग में-१ का भंग संग्वन में नय या जगप्मा इन दोनों में में नायर नी पुन बेद कोई एक जोरकर = का भंग
का भंग जनना जानना । * भाग में-५ का नम अश्वन ना भंग ऊपर के के भंन ।
कषाय ४, पुरुष वेद १५ में भय और जुगुप्या ये दोनों। का भंग जानना
जोरकर का भंग जानना।